क्या आज दहेज और क्रूरता के फर्जी मुकद्दमें दर्ज करा करके पुरुषों से ज्यादा महिलाएं घरेलू अत्याचार नहीं कर रही है?
अपनी बहू से दहेज मांगने वालों की थानों में लिस्ट काफी लंबी है पर अपनी
बेटी-दामाद को दहेज देने वाला परिवार एक भी नहीं है। राज्य भर से मिले
आंकड़ों से यह बात साबित होती है कि दहेज प्रतिषेध अधिनियम में एक तरफा
कारवाई हो रही है।
श्रम और रोजगार मंत्रालय के वर्ष 2001-05 के जारी आंकड़ों के मुताबिक निजी
और सार्वजनिक क्षेत्रों से करीब 14 लाख लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना
पड़ा। कई सर्वे व जांच में यह बात सामने आ चुकी है कि आईपीसी की धारा 498 ए
का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है। इसके तहत कई पतियों पर दहेज के लिए
पत्नी को प्रताड़ित करने के झूठे अरोप लगे हैं। दो साल पूर्व लागू घरेलू
हिंसा उन्नमूलन कानून 2005 से तो महिलाओं को और ताकत दे दी है। उच्चतम
न्यायालय ने वर्ष 2006 में एक सिविल याचिका 583 में यह टिप्पणी की थी कि इस
कानून को तैयार करते समय कई खामियां रह गई हैं। उन खामियों का फायदा उठा
कर कई पत्नियां पति को धमका रही हैं। उन्होंने बताया कि आंकड़े देखें तो
औसतन जहां हर 19 मिनट में देश में किसी व्यक्ति की हत्या होती है, वहीं हर
10 मिनट में एक विवाहित व्यक्ति आत्महत्या करता है। वर्ष 2005-07 के
आंकड़ों के मुताबिक दहेज उत्पीडऩ मामले में कानून की धारा 498-ए, के तहत
1,39,058 मामले दर्ज हुए।
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