Om Durgaye Nmh

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Tuesday 13 November 2012

एफआईआर में नाम होने मात्र के आधार पर पति-संबन्धियों के विरुद्ध धारा-498ए का मुकदमा नहीं होना चाहिये -उच्चतम न्यायालय.....

एफआईआर में नाम होने मात्र के आधार पर पति-संबन्धियों के विरुद्ध धारा-498ए का मुकदमा नहीं होना चाहिये -उच्चतम न्यायालय.....

• डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

भारत की सबसे बड़ी अदालत, अर्थात् सुप्रीम कोर्ट द्वारा अनेक बार इस बात पर चिन्ता प्रकट की जा चुकी है कि भारतीय दण्ड संहिता की धारा 498-ए का जमकर दुरुपयोग हो रहा है। जिसका सबसे बड़ा सबूत ये है कि इस धारा के तहत तर्ज किये जाने वाले मुकदमों में सज

ा पाने वालों की संख्या मात्र दो फीसदी है! यही नहीं, इस धारा के तहत मुकदमा दर्ज करवाने के बाद समझौता करने का भी कोई प्रावधान नहीं है! ऐसे में मौजूदा कानूनी व्यवस्था के तहत एक बार मुकदमा अर्थात् एफआईआर दर्ज करवाने के बाद वर पक्ष को मुकदमे का सामना करने के अलावा अन्य कोई रास्ता नहीं बचता है। जिसकी शुरुआत होती है, वर पक्ष के लोगों के पुलिस के हत्थे चढने से और वर पक्ष के जिस किसी भी सदस्य का भी, वधु पक्ष की ओर से धारा 498ए के तहत एफआईआर में नाम लिखवा दिया जाता है, उन सबको बिना ये देखे कि उन्होंने कोई अपराध किया भी है या नहीं उनकी गिरफ्तारी करना पुलिस अपना परम कर्त्तव्य समझती है!
ऐसे मामलों में आमतौर पर पुलिस पूरी मुस्तेदी दिखाती देखी जाती है। जिसकी मूल में मेरी राय में दो बड़े कारण हैं। पहला तो यह कि यह कानून न्यायशास्त्र के इस मौलिक सिद्धान्त का सरेआम उल्लंघन करता है कि आरोप लगाने के बाद आरोपों को सिद्ध करने का दायित्व अभियोजन या परिवादी पर नहीं डालकर आरोपी को कहता है कि “वह अपने आपको निर्दोष सिद्ध करे।” जिसके चलते पुलिस को इस बात से कोई लेना-देना नहीं रहता कि बाद में चलकर यदि कोई आरोपी छूट भी जाता है तो इसके बारे में उससे कोई सवाल-जवाब किये जाने की समस्या नहीं होगी। वैसे भी पुलिस से कोई सवाल-जवाब किये भी कहाँ जाते हैं?
दूसरा बड़ा कारण यह है कि ऐसे मामलों में पुलिस को अपना रौद्र रूप दिखाने का पूरा अवसर मिलता है और सारी दुनिया जानती है कि रौद्र रूप दिखाते ही सामने वाला निरीह प्राणी थर-थर कांपने लगता है! पुलिस व्यवस्था तो वैसे ही अंग्रेजी राज्य के जमाने की अमानवीय परम्पराओं और कानूनों पर आधारित है! जहॉं पर पुलिस को लोगों की रक्षक बनाने के बजाय, लोगों को डंडा मारने वाली ताकत के रूप में जाना और पहचाना जाता है! ऐसे में यदि कानून ये कहता हो कि 498ए में किसी को भी बन्द कर दो, यह चिन्ता कतई मत करो कि वह निर्दोष है या नहीं! क्योंकि पकड़े गये व्यक्ति को खुद को ही सिद्ध करना होगा कि वह दोषी नहीं है। अर्थात् अरोपी को अपने आपको निर्दोष सिद्ध करने के लिये स्वयं ही साक्ष्य जुटाने होंगे। ऐसे में पुलिस को पति-पक्ष के लोगों का तेल निकालने का पूरा-पूरा मौका मिल जाता है।
अनेक बार तो खुद पुलिस एफआईआर को फड़वाकर, अपनी सलाह पर पत्नीपक्ष के लोगों से ऐसी एफआईआर लिखवाती है, जिसमें पति-पक्ष के सभी छोटे बड़े लोगों के नाम लिखे जाते हैं। जिनमें-पति, सास, सास की सास, ननद-ननदोई, श्‍वसुर, श्‍वसुर के पिता, जेठ-जेठानियाँ, देवर-देवरानियाँ, जेठ-जेठानियों और देवर-देवरानियों के पुत्र-पुत्रियों तक के नाम लिखवाये जाते हैं। अनेक मामलों में तो भानजे-भानजियों तक के नाम घसीटे जाते हैं। पुलिस ऐसा इसलिये करती है, क्योंकि जब इतने सारे लोगों के नाम आरोपी के रूप में एफआईआर में लिखवाये जाते हैं तो उनको गिरफ्तार करके या गिरफ्तारी का भय दिखाकर अच्छी-खासी रिश्‍वत वसूलना आसान हो जाता है और अपनी तथाकथित अन्वेषण के दौरान ऐसे आलतू-फालतू-झूठे नामों को रिश्‍वत लेकर मुकदमे से हटा दिया जाता है। जिससे अदालत को भी अहसास कराने का नाटक किया जाता है कि पुलिस कितनी सही जाँच करती है कि पहली ही नजर में निर्दोष दिखने वालों के नाम हटा दिये गये हैं।
ऐसे में सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश द्वय टीएस ठाकुर और ज्ञानसुधा मिश्रा की बैंच का हाल ही में सुनाया गया यह निर्णय कि “केवल एफआईआर में नाम लिखवा देने मात्र के आधार पर ही पति-पक्ष के लोगों के विरुद्ध धारा-498ए के तहत मुकदमा नहीं चलाया जाना चाहिये”, स्वागत योग्य है| यद्यपि यह इस समस्या का स्थायी समाधान नहीं है। जब तक इस कानून में से आरोपी के ऊपर स्वयं अपने आपको निर्दोष सिद्ध करने का भार है, तब तक पति-पक्ष के लोगों के ऊपर होने वाले अन्याय को रोक पाना असम्भव है, क्योंकि यह व्यवस्था न्याय का गला घोंटने वाली, अप्राकृतिक और अन्यायपूर्ण कुव्यवस्था है!

सरकार, पुलिस और लड़की वालों का गुंडाराज कब तक चलेगा ?

सरकार, पुलिस और लड़की वालों का गुंडाराज कब तक चलेगा ?

चर्चित निशा शर्मा केस यू.पी. का है. उसमें फंसे मेरे मित्र मुनीष दलाल को नौ साल "अदालत" में चले मामले में दोषी नहीं माना. लेकिन इन नौ साल में उसका कैरियर बर्बाद हो गया. नौ साल कोर्ट के चक्कर लगाते हुए लाखों रूपये खर्च हो गए. क्या बिगाड़ लिया यू.पी. पुलिस और सरकार ने "निशा शर्मा" का ? यह तो उदाहरण मात्र एक ही केस है. ऐसे अब तक लाखों केस झूठे साबि

त हो चुके है. आज लड़की वालों की तरफ से दहेज मांगने के लाखों केस राज्य सरकार पूरे देश भर में लड़ रही है. जिसमें एक सर्व के अनुसार 94 % केस झूठे साबित हो रहे है, जिसके कारण न्याय मिलने में देरी हो रही है और जजों का कीमती समय खराब होने के साथ ही देश को आर्थिक नुकसान होने के साथ ही लाखों पुरुष मानसिक दबाब ना सहन नहीं कर पाने के कारण आत्महत्या कर लेते है. सरकार और देश की अदालतें आँख बंद करके बैठी हुई है. यदि सरकार कुछ नहीं कर रही है तो जजों को चाहिए कि लड़की वालों को सख्त से सख्त सजा देते हुए पुरुष को मुआवजा दिलवाए. जजों को एक-दो मामलों खुद संज्ञान लेकर लड़की वालों पर कार्यवाही करने की जरूरत है. फिर कोई भी लड़की वाला झूठे केस दर्ज नहीं करवाएगा. इससे दोषी को सजा मिलेगी और निर्दोष शोषित नहीं होगा. दहेज के झूठे मामलों को सुप्रीम कोर्ट अपनी एक टिप्पणी में "घरेलू आतंकवाद" की संज्ञा दे चुका है. आज अपराध हर राज्य में हो रहे है. बस कुछ हाई प्रोफाइल ही हमारे सामने आ पाते है, बाकियों की एफ.आई.आर ही दर्ज नहीं होती है.            रमेश कुमार सिरफिरा जी

Thursday 4 October 2012

कंप्लेंट केस में शिकायती को कोर्ट में देना होता है सबूत.

कंप्लेंट केस में शिकायती को कोर्ट में देना होता है सबूत.

आए दिन अदालत में कंप्लेंट केस दाखिल किया जाता है और उस मामले में शिकायती के बयान दर्ज किए जाते हैं। अगर कोर्ट बयान से संतुष्ट हो जाए तो आरोपी के नाम समन जारी किया जाता है। इस तरह के कंप्लेंट केस कब दाखिल किए जाते हैं और इसके लिए क्या कानूनी प्रावधान है, बता रहे हैं |

संज्ञेय अपराध के लिए .....
अगर किसी संज्ञेय मामले में पुलिस सीधे एफआईआर दर्ज नहीं करती तो शिकायती सीआरपीसी की धारा-156 (3) के तहत अदालत में अर्जी दाखिल करता है और अदालत पेश किए गए सबूतों के आधार पर फैसला लेती है। कानूनी जानकार बताते हैं कि ऐसे मामले में पुलिस के सामने दी गई शिकायत की कॉपी याचिका के साथ लगाई जाती है और अदालत के सामने तमाम सबूत पेश किए जाते हैं। इस मामले में पेश किए गए सबूतों और बयान से जब अदालत संतुष्ट हो जाए तो वह पुलिस को निर्देश देती है कि इस मामले में केस दर्ज कर छानबीन करे।

असंज्ञेय अपराध के लिए...... 
मामला असंज्ञेय अपराध का हो तो अदालत में सीआरपीसी की धारा-200 के तहत कंप्लेंट केस दाखिल किया जाता है। कानूनी जानकार डी. बी. गोस्वामी के मुताबिक कानूनी प्रावधानों के तहत शिकायती को अदालत के सामने तमाम सबूत पेश करने होते हैं। उन दस्तावेजों को देखने के साथ-साथ अदालत में प्रीसमनिंग एविडेंस होता है। यानी प्रतिवादी को समन जारी करने से पहले का एविडेंस रेकॉर्ड किया जाता है।

प्रतिवादी कब बनता है आरोपी .......
शिकायती ने जिस पर आरोप लगाया है, वह तब तक आरोपी नहीं है, जब तक कि कोर्ट उसे बतौर आरोपी समन जारी न करे। यानी शिकायती ने जिस पर आरोप लगाया है, वह प्रतिवादी होता है और अदालत जब शिकायती के बयान से संतुष्ट हो जाए तो वह प्रतिवादी को बतौर आरोपी समन जारी करती है और इसके बाद ही प्रतिवादी को आरोपी कहा जाता है, उससे पहले नहीं। क्रिमिनल लॉयर अजय दिग्पाल के मुताबिक कंप्लेंट केस में शिकायती के बयान से अगर अदालत संतुष्ट न हो तो केस उसी स्टेज पर खारिज कर दिया जाता है। एक बार अदालत से समन जारी होने के बाद आरोपी अदालत में पेश होता है और फिर मामले की सुनवाई शुरू होती है।

पुलिस केस और कंप्लेंट केस में फर्क ........
कंप्लेंट केस में शिकायती को हर तारीख पर पेश होना होता है। लेकिन शिकायत पर अगर सीधे पुलिस ने केस दर्ज कर लिया हो या फिर अदालत के आदेश से पुलिस ने केस दर्ज किया हो तो शिकायती की हर तारीख पर पेशी जरूरी नहीं है। ऐसे मामले में जिस दिन शिकायती का बयान दर्ज होना होता है, उसी दिन शिकायती को कोर्ट जाने की जरूरत होती है। कंप्लेंट केस में शिकायती को तमाम सबूत अदालत के सामने देने होते हैं, जबकि पुलिस केस में पुलिस मामले की जांच करती है और अपनी रिपोर्ट अदालत में पेश करती है। पुलिस केस में शिकायती और आरोपी के बीच समझौता होने के बाद कोर्ट की इजाजत से केस रद्द किया जा सकता है, वहीं कंप्लेंट केस में शिकायती चाहे तो केस वापस ले सकता है।
 

पति देगा 10 लाख, दहेज का केस रद्द...

पति देगा 10 लाख, दहेज का केस रद्द...

नई दिल्ली।। दहेज प्रताड़ना के एक मामले में दोनों पक्षों में समझौता हो जाने और इसके मुताबिक पत्नी को 10 लाख रुपये देने पर पति के राजी होने के बाद हाई कोर्ट ने इस मामले में दर्ज एफआईआर रद्द करने का निर्देश दिया। अदालत ने आरोपी को बतौर हर्जाना 25 हजार रुपये डिफरेंटली एबल्ड वकीलों के लिए बनाए गए फंड में देने का आदेश भी दिया।

इस मामले में आरोपी पति ने हाई कोर्ट में अर्जी देकर कहा कि उसका अपनी पत्नी से समझौता हो चुका है, दोनों में तलाक हो चुका है और पत्नी को इस बात से ऐतराज नहीं है कि केस रद्द कर दिया जाए। इसके लिए पत्नी की ओर से दी गई अंडरटेकिंग भी अदालत में पेश की गई। अदालत को बताया गया कि तलाक के दौरान साढ़े 6 लाख रुपये पत्नी को दिए गए और बाकी साढ़े तीन लाख रुपये अदालत में दिए जा रहे हैं। इस दौरान सरकारी वकील नवीन शर्मा ने दलील दी कि इस मामले में पुलिस का काफी वक्त जाया हुआ है। केस में गवाही चल रही है, ऐसे में अगर इस स्टेज पर केस रद्द किया जाए तो आरोपी पर हर्जाना लगाया जाना चाहिए। इसके बाद अदालत ने आरोपी पर हर्जाना लगाया और निर्देश दिया कि वह 25 हजार रुपये बार काउंसिल ऑफ दिल्ली के डिसेबल्ड लॉयर्स के फंड में जमा करे।

यह मामला चांदनी महल इलाके का है। 14 जुलाई, 2006 को आरोपी पति के खिलाफ दहेज प्रताड़ना और अमानत में खयानत का केस दर्ज किया गया। अभियोजन पक्ष के मुताबिक, यह शादी 21 मई, 2005 को हुई थी। शादी के बाद 3 मार्च, 2006 को लड़की ने बच्ची को जन्म दिया। बाद में पति-पत्नी में अनबन शुरू हो गई और फिर लड़की ने अपने पति के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का केस दर्ज कराया। इस दौरान महिला ने अपने पति और ससुरालियों के खिलाफ घरेलू हिंसा कानून के तहत भी केस दर्ज कराया। बाद में वह अपनी बच्ची को लेकर चली गई। उसने भरण पोषण संबंधी अर्जी भी दाखिल की। इस दौरान पति ने बच्ची की कस्टडी के लिए याचिका दायर की। फिर यह मामला मध्यस्थता केंद्र को रेफर हो गया और तब इनमें समझौता हो गया और दोनों पक्ष केस वापस लेने को राजी हो गए। साथ ही दोनों तलाक लेने को भी राजी हुए। इस दौरान यह तय हुआ कि पति अपनी पत्नी को 10 लाख रुपये देगा। इसी समझौते के तहत पति ने सवा तीन लाख रुपये तलाक के पहले मोशन पर जबकि सवा तीन लाख रुपये दूसरे मोशन पर दिए और बाकी साढ़े तीन लाख रुपये हाई कोर्ट में सुनवाई के दौरान पत्नी के हवाले किया।


 

दहेज प्रताड़ना : महिला 1, पति 2

दहेज प्रताड़ना : महिला 1, पति 2

नई दिल्ली।। अदालत में दहेज प्रताड़ना का एक अनोखा केस चल रहा है। पीड़ित महिला ने अपने पहले पति को तलाक दिए बिना दूसरी शादी कर ली, लेकिन यह शादी भी ज्यादा नहीं चल पाई। लिहाजा महिला ने दूसरे पति को भी छोड़ दिया। महिला ने अपने दोनों पतियों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना के तहत पुलिस में कंप्लेंट कर दी।

पुलिस ने महिला की कंप्लेंट पर पहले पति और उसके परिवार वालों के साथ-साथ दूसरे पति के खिलाफ भी मामला दर्ज कर लिया। फिलहाल इस केस की सुनवाई महिला कोर्ट की मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट एकता गाबा की अदालत में चल रही है। अदालत ने सरकारी पक्ष को गवाही शुरू कराने का आदेश दिया है।

पेश मामले के मुताबिक जनकपुरी इलाके में रहने वाली बलजिंदर कौर की शादी नवंबर 1990 में बलविंदर सिंह (दोनों बदले हुए नाम) के साथ हुई थी। लड़की वालों ने अपनी हैसियत के मुताबिक दहेज भी दिया था। बलविंदर सिंह का मुंबई में भी घर था। लिहाजा शादी होते ही वह लड़की को साथ लेकर मुंबई चला गया। शादी के कुछ समय बाद ही ससुराल वालों ने लड़की को दहेज के लिए प्रताड़ित करना शुरू कर दिया। 13 जनवरी 1991 को पहली लोहड़ी मनाने बलजिंदर कौर अपने मायके आई। यहां आने के बाद भी ससुराल वालों ने उसके परिवार वालों के सामने दहेज की डिमांड रखी। लड़की के पिता ने उसी वक्त उधार लेकर 20,000 रुपये लड़की के ससुराल वालों को दिए। इसके बाद वह वापस मुंबई लौट गई।

वापस लौटने के बाद भी उसे लगातार दहेज के लिए प्रताडि़त किया जाता रहा। परेशान होकर उसने अपने पति का घर छोड़ दिया। कुछ समय तक अकेला रहने के बाद उसने योगेंद्र सिंह उर्फ टोनी (बदला हुआ नाम) से दूसरी शादी कर ली। दुर्भाग्यवश महिला की दूसरे पति से भी बन नहीं पाई। लिहाजा महिला ने दूसरे पति को भी छोड़ दिया।

महिला ने पहले पति सास, ससुर और ननद के अलावा दूसरे पति के खिलाफ दहेज प्रताड़ना की कंप्लेंट की। कंप्लेट में महिला ने बलविंदर सिंह और योगेंद्र सिंह को अपना पति बताया है। कंप्लेंट में कहीं पर भी इस बात का जिक्र नहीं है कि उसने पहले पति को तलाक देकर दूसरी शादी की। पुलिस ने अपना पल्ला झाड़ते हुए पांचों आरोपियों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का दर्ज कर लिया। इस मामले में एफआईआर 2001 में दर्ज की गई थी, लेकिन अभी तक मामला लटका हुआ है। फाइल जब ट्रांसफर होकर मेट्रोपॉलिटन मैजिस्ट्रेट एकता गाबा की अदालत में पहुंची तो अदालत भी यह देखकर हैरान रह गई कि महिला के दो-दो पतियों के खिलाफ दहेज प्रताड़ना का मुकदमा कैसे दर्ज हो सकता है? बहरहाल, अब इसमें गवाही शुरू होगी।

Friday 3 August 2012

'पापा अंदर जल रहे थे, मां ने बाहर से दरवाजा बंद किया'

नई दिल्ली। पति-पत्नी के बीच झगड़ा आम बात है लेकिन सवाल यह है कि आखिर ऐसी कौन सी परिस्थिति पैदा हो गई कि बाथरुम में बंद पति आग की लपटों में घिरा रहा और पत्नी बाहर खड़ी तमाशा देखती रही? आखिर 18 साल की शादी के बाद ऐसी कौन सी नौबत आ गई कि पत्नी बेटी के सामने ही इतना क्रूर रवैया अपनाती रही? पिता मदद के लिए चिल्लाता रहा और मां ने बेटी को जकड़ कर रख लिया? मनोवैज्ञानिकों की मानें तो इसकी वजह सामान्य नहीं हो सकती। झगड़े के इतने बड़े रूप लेने की वजह तभी हो सकती है जब वो शख्स साइको हो।

दरअसल नाबालिग बेटी की मानें तो मां जसलीन पिता हरपाल से अलग होना चाहती थी। कई सालों से अनबन होने की वजह से जल्द ही दोनों का तलाक होने वाला था। जबकि संपत्ति को लेकर दोनों के बीच विवाद बढ़ता ही जा रहा था। मां पैसे मांगती थी जबकि पिता इसे लिखित में चाहते थे। साथ ही इस बात को भी लिखित में चाहते थे कि अब तक जसलीन ने हरपाल से क्या कुछ लिया है? इसी संपत्ति के विवाद में मां पिता के खिलाफ खौफनाक साजिश रचने लगी।

मनोवैज्ञानिकों की मानें तो ऐसी स्थिति में झगड़े की वजह को समझना बहुत जरूरी होता है। साथ ही ऐसे मामले में मनोवैज्ञानिकों की राय लेनी जरूरी होती है। क्योंकि अगर इसका सही समय पर इलाज नहीं कराया गया तो कभी कभी ये स्वभाव मानसिक बीमारी की शक्ल ले लेता है। जिसे आम तौर पर लोग समझ नहीं पाते।

कुल मिलाकर दिल्ली के भोगल में जो कुछ हुआ उसने हर किसी को हैरान कर दिया है। ये साफ कर दिया है कि मामूली झगड़ा किस तरह से एक बड़ी घटना का रूप ले सकता है।
बता दें कि कुछ दिनों पहले तक ये मामला हादसा बताने की कोशिश की जाती रही। दरअसल घर में जले इनवर्टर, बैटरी कुछ इसी तरफ इशारा कर रहे थे लेकिन बेटी ने जैसे ही मां के खिलाफ मुंह खोला साजिश की कड़ियां खुद ब खुद जुड़ने लगीं। बेटी के बयान के बाद ही मां को गिरफ्तार कर लिया गया है।
ये सवाल महीने भर तक कर गुत्थी बने रहे। जब तक बेटी सामने नहीं आई लेकिन जैसे ही मामला खुला पिता की मौत का राज सामने आ गया। पुलिस के मुताबिक शुरुआती तफ्तीश में इस मामले को हादसा करार देने की भरसक कोशिश की गई। दरअसल पुलिस के मुताबिक इस मामले में कोई गवाह सामने नहीं था।
घर में जला हुआ इनवर्टर मिला, बैट्री में आग लग गई थी, वहां जले हुए कपड़े मिले लेकिन जैसे ही बेटी सामने आई पुलिस ने सबसे पहले सीआरपीसी की धारा 164 के तहत कोर्ट में बेटी का बयान दर्ज कराया। इस बयान के अलावा पुलिस ने परिस्थितिजन्य सबूतों और फॉरेंसिक रिपोर्ट के मद्देनजर जसलीन को गिरफ्तार कर लिया।
लेकिन सवाल ये है कि आखिर ऐसी कौन सी स्थिति पैदा हो गई कि मां पर ही पिता की हत्या का आरोप लग रहा है। आखिर क्यों मां ने बेटी को रोकने की कोशिश की। बेटी की मानें तो घर में मां-पिता के बीच अक्सर झगड़ा होता था। मां पिता से अलग होना चाहती थी, साथ ही पैसे की मांग भी करती थी।
वैसे 15 साल की इस नाबालिग बेटी की मानें तो कई दिनों से मां के इरादे खौफनाक थे। मां ने बकायदा अपनी पति की हत्या की साजिश रची। कुछ दिन पहले से ही ऐसे काम करने लगी थीं। जिस पर उसने शुरू में तो ध्यान नहीं दिया लेकिन अब जब पिता की जिंदा जलकर मौत हो चुकी है तो हत्या की साजिश की कड़ी जुड़ती नजर आ रही है।
बेटी के मुताबिक पिता की मौत के मामले में मां के खिलाफ कई सबूत हैं। पहला सबूत ये है कि घटना से कई दिन पहले ही उसने नायलॉन से कपड़े निकालने शुरू कर दिए जो आग लगने की जगह पर मिला। दूसरा सबूत ये है कि बाथरूम की कुंडी पर तार लगाया गया ताकि वो अंदर से न खुल पाए।
तीसरा सबूत ये है कि जब बाथरुम में आग लगी तो मां वहां खड़ी तमाशा देखती रही। चौथा सबूत ये है कि जब बेटी और दूसरे लोगों ने बचाने की कोशिश की तो न सिर्फ उसने रोका बल्कि ये भी कहा कि अंदर कोई नहीं है। अब बेटी की एक ही ख्वाहिश है कि उसकी मां को सजा मिले ताकि उसके पिता को इंसाफ मिल सके।
यही नहीं मैकेनिकल इंजीनियर हरपाल सिंह का परिवार भी उनकी पत्नी के खिलाफ आरोप लगा रहा है। हरपाल गुड़गांव की एक कंपनी में काम करते थे लेकिन आते जाते अक्सर नीचे के फ्लोर में रह रही अपनी मां से मिलते थे। हरपाल की मां की मानें तो वो अक्सर पत्नी की ज्यादती की शिकायत करता रहता था।
हरपाल की जसलीन से शादी 1994 में हुई थी लेकिन शुरू से ही दोनों में काफी लड़ाई होती थी। हरपाल की मां की मानें तो घटना वाले दिन भी बहू की हरकत संदेह के घेरे में रही। इनके मुताबिक अगर पत्नी बाथरुम और घर का दरवाजा खोल देती तो हरपाल की जिंदगी बचाई जा सकती थी।
इस घटना के बाद पुलिस ने कई बार हरपाल की नाबालिग बेटी के साथ पूछताछ की है। बेटी की अब एक ही इच्छा है कि मां को उसके किए की सजा मिले और पिता को इंसाफ मिले। इसके लिए जितनी भी कानूनी लड़ाई लड़नी पड़ेगी। इसके लिए वो तैयार है।

Saturday 28 July 2012

प्रेमी किरायेदार के साथ मिलकर पत्नी ने की पति की हत्या.......

नई दिल्ली
किरायेदार के साथ प्रेम संबंध थे और इस कारण पति को रास्ते से हत्या की योजना बनाई गई और फिर किरायेदार के साथ मिलकर पति की हत्या को अंजाम दिया गया। निचली अदालत ने इस मामले में सोनिया और उसके किरायेदार सतपाल को उम्रकैद सुनाई। मामला हाई कोर्ट के सामने आया। हाई कोर्ट ने कहा कि सोनिया ने सतपाल के साथ मिलकर हत्या की साजिश रची। दोनों की अपील खारिज कर दी गई। सोनिया इस मामले में खुद ही शिकायती बनी थी।

मामला 2004 का है। उत्तम नगर इलाके में रहने वाली सोनिया उर्फ गुड्डो ने बयान दिया कि जब वह अपने एक जानकार राकेश के साथ घर पहुंची तो उसके पति घर में लहूलुहान पड़े हुए थे। पुलिस के मुताबिक, 23 सितंबर 2004 को सोनिया ने बयान दिया कि वह अपनी बेटी को स्कूल छोड़ने गई थी। वापस आई तो उसके पति ने कहा कि उनके जानने वाले राकेश को बुलाकर ले आए। वह राकेश के साथ जब घर पहुंची तो उसके पति मनोज कुमार मरे पड़े थे।

इस दौरान उसने राकेश से कहा कि वह पुलिस को इत्तला न करे लेकिन पड़ोसियों ने पुलिस को इत्तला की। पुलिस ने सोनिया के बयान के आधार पर हत्या का केस दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी। पुलिस ने सोनिया की बेटी और राकेश का बयान दर्ज किया। दोनों के बयान सोनिया के बयान से मेल नहीं खा रहे थे। पुलिस को शिकायती सोनिया पर शक हुआ और उसने दोबारा सोनिया से पूछताछ की। सोनिया ने पुलिस के सामने इकबालिया बयान दिया। सोनिया के बयान के आधार पर पुलिस ने खून से सना तौलिया और अन्य कपड़ें बरामद किए। उसके बयान के आधार पर इस मामले का दूसरा आरोपी सतपाल करनाल रोड से गिरफ्तार किया गया। सतपाल के बयान के आधार पर लोहे की पाइप बरामद की गई जिससे हत्या को अंजाम दिया गया था। यह मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित था।
अदालती सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया कि सतपाल सोनिया और मनोज का किरायेदार था। दोनों में अवैध संबंध थे। मनोज की बेटी ने बयान दिया कि उसने सुबह 7:15 बजे अपने पिता मनोज, मां सोनिया और सतपाल को एक साथ घर में देखा था। सतपाल कुसीर् पर बैठा था जबकि मनोज नीचे। दूसरी तरफ सोनिया ने पुलिस को बयान दिया था कि सतपाल सुबह 5:30 से 6 के बीच घर से निकल गया था। इस मामले में 19 गवाह बनाए गए। निचली अदालत ने हत्या की साजिश में सोनिया और सतपाल को उम्रकैद सुनाई जबकि सतपाल को हत्या के लिए भी उम्रकैद सुनाई गई।

मामला हाई कोर्ट के सामने आया। हाई कोर्ट ने कहा कि साक्ष्य से साफ है कि सतपाल पेइंग गेस्ट के तौर पर मनोज के घर रहता था। राकेश उन सभी को जानते थे। राकेश ने बयान दिया था कि अक्सर सोनिया और सतपाल एक साथ मजार जाते थे। जब वह सोनिया के साथ घर पहुंचे तो सोनिया ने दरवाजा चाबी से खोला और अंदर मनोज मरा पड़ा था। अदालत ने कहा कि सतपाल और सोनिया में प्रेम संबंध था और इसी कारण मनोज को रास्ते से हटाया गया।

दहेज केस में समझौता देगा बेस्ट ऑप्शन

दहेज केस में समझौता देगा बेस्ट ऑप्शन

दहेज प्रताड़ना मामले को समझौता वादी किए जाने को लेकर लॉ कमिशन सिफारिश करने की तैयारी में है। दरअसल अभी तक दहेज प्रताड़ना का मामला गैर समझौता वादी है और इस मामले में समझौता होने के बाद भी केस रद्द करने के लिए हाई कोर्ट से गुहार लगानी पड़ती है और दोनों पक्षों की दलील से संतुष्ट होने के बाद ही हाई कोर्ट मामला रद्द करने का आदेश देती है लेकिन अगर केस समझौता वादी हो जाए तो मैजिस्ट्रेट की कोर्ट में ही अर्जी दाखिल कर मामले में समझौता किया जा सकता है। मैजिस्ट्रेट मामले को खत्म कर सकता है। कानूनी जानकार बताते हैं कि दहेज प्रताड़ना मामले को समझौता वादी किए जाने का बेहतर परिणाम देखने को मिलेगा।
जानकार बताते हैं कि कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि दहेज प्रताड़ना से संबंधित मामले को टूल की तरह इस्तेमाल किया जाता है। कई बार हाई कोर्ट भी सख्त टिप्पणी कर चुकी है। 2003 में दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस जे. डी. कपूर ने अपने एक ऐतिहासिक जजमेंट में कहा था कि ऐसी प्रवृति जन्म ले रही है जिसमें कई बार लड़की न सिर्फ अपने पति बल्कि उसके तमाम रिश्तेदार को ऐसे मामले में लपेट देती है। एक बार ऐसे मामले में आरोपी होने के बाद जैसे ही लड़का व उसके परिजन जेल भेजे जाते हैं तलाक का केस दायर कर दिया जाता है। नतीजतन तलाक के केस बढ़ रहे हैं। अदालत ने कहा था कि धारा-498 ए से संबंधित मामले में अगर कोई गंभीर चोट का मामला न हो तो उसे समझौता वादी बनाया जाना चाहिए। अगर दोनों पार्टी अपने विवाद को खत्म करना चाहते हैं तो उन्हें समझौते के लिए स्वीकृति दी जानी चाहिए। धारा-498 ए (दहेज प्रताड़ना) के दुरुपयोग के कारण शादी की बुनियाद को हिला रहा है और समाज के लिए यह अच्छा नहीं है।

अदालत का वक्त होता है खराब

दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस (रिटायर्ड) आर. एस. सोढी ने बताया कि कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि पति-पत्नी के बीच गर्मागर्मी के कारण दोनों एक दूसरे के खिलाफ तोहमत लगाते हैं और इस कारण मामला कोर्ट में आ जाता है। लेकिन बाद में दोनों पक्ष को महसूस होता है कि मामले में समझौते की गुंजाइश बची हुई है और दोनों पक्ष अगर समझौता करना चाहें तो उसका प्रावधान होना चाहिए। अभी के प्रावधान के तहत ऐसे मामले में अगर दोनों पक्ष मामला खत्म भी करना चाहें तो उन्हें एफआईआर रद्द करने के लिए हाई कोर्ट में इसके लिए अर्जी दाखिल करनी होती है कई बार दोनों पक्ष कोर्ट के बाहर समझौता कर लेते हैं और अदालत में ट्रायल के दौरान मुकर जाते हैं ऐसे में अदालत का वक्त बर्बाद होता है। अगर दहेज प्रताड़ना मामले को समझौता वादी बनाया जाएगा तो निश्चित तौर पर ऐसे मामलों की पेंडेंसी में कमी आएगी।

और भी विकल्प खुले हैं

जानेमाने सीनियर लॉयर के . टी . एस . तुलसी ने कहा कि मामला समझौता वादी किए जाने से भी दोषी को बच निकलने का कोई चांस नहीं है। लेकिन इसका फायदा यह है कि अगर दोनों पक्ष चाहता है कि वह मामला खत्म कर भविष्य में फिर से साथ रहेंगे तो भी समझौता किए जाने का प्रावधान बेहतर विकल्प होगा अगर दोनों इस बात पर सहमत हों कि अब उन्हें साथ नहीं रहना तो भी आपसी सहमति से तलाक लिए जाने के एवज में दोनों मामले को सेटल कर सकेंगे। वैसे भी दहेज प्रताड़ना मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद भी अधिकतम 3 साल कैद की सजा का प्रावधान है। 3 साल तक की सजा वाले अधिकांश मामले समझौता वादी हैं ऐसे में इसे भी समझौता वादी किया जाना जरूरी है।

महिलाएं सुरक्षित महसूस करती हैं

जानीमानी वकील मीनाक्षी लेखी ने कहा कि दहेज प्रताड़ना मामले को समझौता वादी किया जाए और मामला गैर जमानती बना रहे तो दोषी को बचने का चांस नहीं रहेगा। ज्यादातर समझौता वादी केस जमानती होता है लेकिन दहेज प्रताड़ना मामला गैर जमानती है और ऐसी स्थिति में लड़का पक्ष को यह पता होगा कि अगर वह गलती करेंगे तो जेल जाएंगे। अगर किसी भी सूरत में समझौते की गुंजाइश है तो वह समझौते का रास्ता अपना सकते हैं और इस तरह पीडि़ता को जल्दी न्याय मिलेगा। निश्चित तौर पर कई बार देखने को मिलता है कि दहेज प्रताड़ना से संबंधित केस का दुरुपयोग किया जाता है लेकिन कई बार यह भी देखने को मिलता है कि लड़की को इस तरह प्रताडि़त किया जाता है कि वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पाती ऐसे में दहेज प्रताड़ना से संबंधित कानून में किसी भी तरह की ढिलाई ठीक नहीं होगी। यह कानून इसीलिए बनाया गया ताकि महिलाओं को सुरक्षा दी जा सके और काफी हद तक इस कारण महिलाएं अपने आप को काफी सुरक्षित महसूस करती हैं।

पति की हत्या में पत्नी और प्रेमी को उम्रकैद....

पति की हत्या में पत्नी और प्रेमी को उम्रकैद....

नई दिल्ली
अदालत ने अवैध संबंधों का विरोध करने पर पति की हत्या मामले में मृतक की पत्नी और उसके प्रेमी को उम्रकैद सुनाई है। अदालत ने घरेलू नौकरानी को सबूत नष्ट करने के इल्जाम से बरी कर दिया। अडिशनल सेशन जज अतुल कुमार गर्ग की अदालत ने मृतक की 11 साल की लड़की की गवाही को सबसे अहम माना। लड़की ने अदालत से कहा कि वारदात वाली रात मंदीप सिंह उनके घर आया था। पहले उसने उसकी मां परमजीत कौर के साथ मिलकर उसके पिता को शराब पिलाई। इसके बाद उसे और उसके भाई को नौकरानी के साथ दूसरे कमरे में भेज दिया था। अगले दिन उसके पिता मृत पाए गए थे।

पेश मामले के मुताबिक, 27-28 अक्टूबर 2007 को पुलिस को सूचना मिली थी कि डिफेंस कॉलोनी इलाके में रहने वाले एक शख्स की हत्या हो गई है। पुलिस ने मौके से खून से सना एक चाकू और लोहे का तवा भी बरामद किया। पुलिस को छानबीन से पता चला कि मृतक हरभजन सिंह की पत्नी परमिंदर कौर के किसी मंदीप सिंह नामक शख्स से अवैध संबंध थे। हरभजन सिंह इसका विरोध करता था।

पुलिस ने महिला को हिरासत में लेकर उससे सख्ती से पूछताछ की तो उसने सच बयान कर दिया। पुलिस ने उससे मिली जानकारी के आधार पर मंदीप सिंह को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने सबूत नष्ट करने के आरोप में मृतक की नौकरानी चंदा को भी गिरफ्तार किया। पुलिस ने जब मृतक की लड़की से पूछताछ की तो उसने इस बात का खुलासा किया कि मंदीप सिंह अकसर उनके घर पर आता था। जब भी वह घर आता था उनकी मां उन्हें दूसरे कमरे में भेज देती थी। वारदात वाली रात भी वह उनके घर पर आया था।

अभियोजन पक्ष ने मृतक के बच्चों सहित 21 गवाहों को अदालत में पेश किया। अदालत ने गवाहों के बयान और अभियोजन पक्ष की दलील सुनने के बाद मंदीप सिंह और परमिंदर कौर को हत्या और सबूत नष्ट करने का दोषी करार देते हुए उन्हें उम्रकैद सुनाई। अदालत ने दोनों पर 10-10 हजार रुपये का जुर्माना भी किया। वहीं अदालत ने नौकरानी को संदेह का लाभ देते हुए उसे बरी कर दिया।

Tuesday 17 July 2012

किन मामलों में हो सकता है समझौता और किन में नहीं

किन मामलों में हो सकता है समझौता और किन में नहीं1 Jul 2012, 0900 hrs IST,नवभारत टाइम्स

देखने में आता है कि कई बार किसी मामले में शिकायती और आरोपी के बीच समझौता हो जाता है और केस खत्म होने के लिए संबंधित अदालत में अर्जी दाखिल की जाती है। केस रद्द करने का आदेश पारित हो जाता है। लेकिन कई ऐसे मामले भी हैं, जिनमें समझौता नहीं हो सकता। और ऐसे मामले भी हैं, जिनमें हाई कोर्ट की इजाजत से ही केस खत्म हो सकता है। क्या है कानूनी प्रावधान, बता रहे हैं राजेश चौधरी :

समझौतावादी मामले
सीआरपीसी के तहत मामूली अपराध वाले मामले को 'समझौतावादी अपराध' की कैटिगरी में रखा गया है। जैसे क्रिमिनल डिफेमेशन, मारपीट, जबरन रास्ता रोकना आदि से संबंधित मामले समझौता वादी अपराध की कैटिगरी में रखा गया है। कानूनी जानकार और हाई कोर्ट में सरकारी वकील नवीन शर्मा के मुताबिक समझौतावादी अपराध वह अपराध है, जो आमतौर पर मामूली अपराध की श्रेणी में रखा जाता है। ऐसे मामले में शिकायती और आरोपी दोनों आपस में समझौता कर कोर्ट से केस खत्म करने की गुहार लगा सकते हैं।

ऐसे मामले में अगर दोनों पक्षों में आपस में समझौता हो जाए और केस खत्म करने के लिए रजामंदी हो जाए तो इसके लिए इन्हें संबंधित कोर्ट के सामने अर्जी दाखिल करनी होती है। इस अर्जी में अदालत को बताया जाता है कि चूंकि दोनों पक्षों में समझौता हो गया है और मामला समझौतावादी है, ऐसे में केस रद्द किया जाना चाहिए। अदालत की इजाजत से केस रद्द किया जाता है। जो मामले समझौतावादी हैं, उसके निपटारे के लिए केस को लोक अदालत में भी रेफर किया जाता है। लोक अदालत ऐसे मामले में एक सुनवाई में केस का निपटारा कर देती है।

गैर समझौतावादी मामले
जो मामले गैर समझौतावादी हैं, उसमें दोनों पक्षों के आपसी समझौते से केस खत्म नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट के वकील डी. बी. गोस्वामी के मुताबिक अगर मामला हत्या, बलात्कार, डकैती, फिरौती के लिए अपहरण सहित संगीन अपराध से संबंधित है तो ऐसे मामले में शिकायती और आरोपी के बीच समझौता होने से केस रद्द नहीं किया जा सकता। लेकिन किसी दूसरे गैर समझौतावादी मामले में अगर दोनों पक्षों में समझौता हो जाए तो भी हाई कोर्ट की इजाजत से ही एफआईआर रद्द की जा सकती है, अन्यथा नहीं। इसके लिए दोनों पक्षों को हाई कोर्ट में सीआरपीसी की धारा-482 के तहत अर्जी दाखिल करनी होती है और हाई कोर्ट से गुहार लगाई जाती है कि चूंकि दोनों पक्षों में समझौता हो गया है और इस मामले को आगे बढ़ाने से कोई मकसद हल नहीं होगा, ऐसे में हाई कोर्ट अपने अधिकार का इस्तेमाल कर केस रद्द करने का आदेश दे दे।

सीआरपीसी की धारा-482 में हाई कोर्ट के पास कई अधिकार हैं। हाई कोर्ट जब देखता है कि न्याय के लिए उसे अपने अधिकार का इस्तेमाल करना जरूरी है तब ऐसे मामलों में अपने अधिकार का इस्तेमाल करता है। देखा जाए तो दहेज प्रताड़ना से संबंधित मामले गैर समझौतावादी हैं, लेकिन अगर शिकायत करने वाली बहू फिर से अपने ससुराल में रहना चाहती हो और उसे अपने पति से समझौता हो चुका हो और ऐसी सूरत में दोनों पक्ष केस रद्द करवाना चाहते हैं तो वे हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर इसके लिए गुहार लगाते हैं।

कई बार अगर दोनों पक्ष इस बात के लिए सहमत हो जाते हैं कि उन्हें अब साथ नहीं रहना और आपसी रजामंदी से वह तलाक भी चाहते हैं और गुजारा भत्ता आदि देने के लिए पति तैयार हो जाता है तो ऐसी सूरत में भी दहेज प्रताड़ना मामले में दोनों पक्ष केस खत्म करने की गुहार लगाते हैं। तब हाई कोर्ट अपने अधिकार का इस्तेमाल कर केस रद्द करने का आदेश पारित कर सकता है। यानी गैर समझौतावादी केसों में हाई कोर्ट के आदेश से ही केस रद्द किया जा सकता है अन्यथा नहीं।

तलाक होने पर पति भी मांग सकता हैपत्नी से गुजारा भत्ता......

तलाक होने पर पति भी मांग सकता हैपत्नी से गुजारा भत्ता......

सरकार ने हाल में हिंदू मैरिज एक्ट से जुड़े कानून में बदलाव करने का फैसला किया है। इसके लागू हो जाने के बाद तलाक लेना ज्यादा आसान हो जाएगा। वैसे, पहले से मौजूद कानून में कई ऐसे आधार हैं, जिनके तहत तलाक के लिए अर्जी दाखिल की जा सकती है। तलाक के आधार और इसकी मौजूदा प्रक्रिया के बारे में बता रहे हैं कमल हिन्दुस्तानी जी
तलाक के आधार
तलाक लेने के कई आधार हैं जिनकी व्याख्या हिंदू मैरिज एक्ट की धारा-13 में की गई है। कानूनी जानकार अजय दिग्पाल का कहना है कि हिंदू मैरिज एक्ट के तहत कोई भी (पति या पत्नी) कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी दे सकता है। व्यभिचार (शादी के बाहर शारीरिक रिश्ता बनाना), शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना, नपुंसकता, बिना बताए छोड़कर जाना, हिंदू धर्म छोड़कर कोई और धर्म अपनाना, पागलपन, लाइलाज बीमारी, वैराग्य लेने और सात साल तक कोई अता-पता न होने के आधार पर तलाक की अर्जी दाखिल की जा सकती है।
यह अर्जी इलाके के अडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज की अदालत में दाखिल की जा सकती है। अर्जी दाखिल किए जाने के बाद कोर्ट दूसरी पार्टी को नोटिस जारी करता है और फिर दोनों पार्टियों को बुलाया जाता है। कोर्ट की कोशिश होती है कि दोनों पार्टियों में समझौता हो जाए लेकिन जब समझौते की गुंजाइश नहीं बचती तो प्रतिवादी पक्ष को वादी द्वारा लगाए गए आरोपों के मद्देनजर जवाब दाखिल करने को कहा जाता है। आमतौर पर इसके लिए 30 दिनों का वक्त दिया जाता है। इसके बाद दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट मामले में ईशू प्रेम करती है और फिर गवाहों के बयान शुरू होते हैं यानी वादी ने जो भी आरोप लगाए हैं, उसे उसके पक्ष में सबूत देने होंगे।
कानूनी जानकार ललित अस्थाना ने बताया कि वादी ने अगर दूसरी पार्टी पर नपुंसकता या फिर बेरहमी का आरोप बनाया है तो उसे इसके पक्ष में सबूत देने होंगे। नपुंसकता, लाइलाज बीमारी या पागलपन के केस में कोर्ट चाहे तो प्रतिवादी की मेडिकल जांच करा सकती है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत फैसला देती है। अगर तलाक का आदेश होता है तो उसके साथ कोर्ट गुजारा भत्ता और बच्चों की कस्टडी के बारे में भी फैसला देती है।
एडवोकेट आरती बंसल ने बताया कि हिंदू मैरिज एक्ट की धारा-24 के तहत दोनों पक्षों में से कोई भी गुजारे भत्ते के लिए किसी भी स्टेज पर अर्जी दाखिल कर सकता है। पति या पत्नी की सैलरी के आधार पर गुजारा भत्ता तय होता है। बच्चा अगर नाबालिग हो तो उसे आमतौर पर मां के साथ भेजा जाता है। पति या पत्नी दोनों में जिसकी आमदनी ज्यादा होती है, उसे गुजारा भत्ता देना पड़ सकता है।
आपसी रजामंदी से तलाक
आपसी रजामंदी से भी दोनों पक्ष तलाक की अर्जी दाखिल कर सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि दोनों पक्ष एक साल से अलग रहे हों। आपसी रजामंदी से लिए जाने वाले तलाक में आमतौर पर टेंपरामेंटल डिफरेंसेज की बात होती है। इस दौरान दोनों पक्षों द्वारा दाखिल अर्जी पर कोर्ट दोनों पक्षों को समझाने की कोशिश करता है। अगर समझौता नहीं होता, तो कोर्ट फर्स्ट मोशन पास करती है और दोनों पक्षों को छह महीने का समय देती है और फिर पेश होने को कहती है। इसके पीछे मकसद यह है कि शायद इतने समय में दोनों पक्षों में समझौता हो जाए।
छह महीने बाद भी दोनों पक्ष फिर अदालत में पेश होकर तलाक चाहते हैं तो कोर्ट फैसला दे देती है। आपसी रजामंदी के लिए दाखिल होने वाली अजीर् में तमाम टर्म एंड कंडिशंस पहले से तय होती हैं। बच्चों की कस्टडी के बारे में भी जिक्र होता है और कोर्ट की उस पर मुहर लग जाती है।
जूडिशल सैपरेशन
हिंदू मैरिज एक्ट में जूडिशल सैपरेशन का भी प्रोविजन है। यह तलाक से थोड़ा अलग है। इसके लिए भी अर्जी और सुनवाई तलाक की अर्जी पर होने वाली सुनवाई के जैसे ही होती है, लेकिन इसमें शादी खत्म नहीं होती। दोनों पक्ष बाद में चाहें तो सैपरेशन खत्म कर सकते हैं यानी जूडिशल सैपरेशन को पलटा जा सकता है, जबकि तलाक को नहीं। एक बार तलाक हो गया और उसके बाद दोनों लोग फिर से साथ आना चाहें तो उन्हें दोबारा से शादी करनी होगी।

कोई पढ़ेगा मेरे दिल का दर्द ?

भारत देश में ऐसा राष्टपति होना चाहिए जो देश के आम आदमी की बात सुने और भोग-विलास की वस्तुओं का त्याग करने की क्षमता रखता हो. ऐसा ना हो कि देश का पैसा अपनी लम्बी-लम्बी विदेश यात्राओं में खर्च करें. इसका एक छोटा-सा उदाहरण माननीय राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल जी है. जहाँ पर किसी पत्र का उत्तर देना भी उचित नहीं समझा जाता है. इसके लिए मेरा पत्र ही एक उधारण है |
माननीय राष्ट्रपति जी, मैंने आपको पत्र भेजकर इच्छा मृत्यु की मांग की थी और पुलिस द्वारा परेशान किये जाने पर भी मैंने आपको पत्र भेजकर मदद करने की मांग की थी. अब लगभग एक साल मेरे भेजे पत्र को हो चुके है. आपके यहाँ से कोई मदद नहीं मिली. क्या अब मैं अपना जीवन अपने हाथों से खत्म कर लूँ. कृपया मुझे जल्दी से जबाब दें.
मैंने जब अपने वकीलों या अनेक व्यक्तियों को अपने केसों के बारें में और अपने व्यवहार के बारे में बताया तब उनका यहीं कहना था कि आपको अपनी पत्नी के इतने अत्याचार नहीं सहन करने चाहिए थें और उसको खूब अच्छी तरह से मारना चाहिए था. लगभग छह महीने पहले आए एक फोन पर मेरी पत्नी का कहना था कि-अगर तुमने कभी मारा होता तो तुम्हारा "घर" बस जाता. क्या मारने से घर बसते हैं ? क्या आज महिलाएं खुद मार खाना चाहती हैं ? क्या कोई महिला बिना मार खाए किसी का घर नहीं बसा सकती है ? इसके साथ एक और बिडम्बना देखें-मेरे ऊपर दहेज के लिए मारने-पीटने के आरोपों के केस दर्ज है और मेरी पत्नी के पास इसके कोई भी सबूत नहीं है. केस दर्ज होने के एक साल बाद मेरी पत्नी ने एक दिन फोन पर कहा था कि ये सब मैंने नहीं लिखवाया ये तो वकील ने लिखवाया है , क्योकि हमारा केस ही आपके खिलाफ दर्ज नहीं हो रहा था. फिर आदमी कहीं पर तो अपना गुस्सा तो निकलेगा. पाठकों आपको शायद मालूम हो हमारे देश में एक पत्नी द्वारा अपने पति और उसके परिजनों के खिलाफ एफ.आई.आर. लिखवाते समय कोई सबूत नहीं माँगा जाता है. इसलिए आज महिलाये दहेज कानून को अपने सुसराल वालों के खिलाफ "हथिहार" के रूप में प्रयोग करती है और मेरी पत्नी तो यहाँ तक कहती है कि मेरे बहन और जीजा आदि को फंसाने के लिए पुलिसे और वकील ने उकसाया था और एक दिन जब मैं अपनी बिमारी की वजह से "पेशी" पर नहीं गया था. तब उन्होंने मेरी पत्नी का "रेप" तक करने की कोशिश की थी. अब आप मेरी पत्नी का क्या-क्या सच मानेंगे. यह आप बताए. मैं यह बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ कि एक दिन झूठे का मुहँ काला होगा और सच्चे का बोलबाला होगा. मगर अभी तो पुलिस ने मेरे खिलाफ "आरोप पत्र" यानि चार्जशीट भी दाखिल नहीं की है. दहेज मांगने के झूठे केसों को निपटाने में लगने वाला "समय" और "धन" क्या मुझे वापिस मिल जायेगा. पिछले दिनों ही दिल्ली की एक निचली अदालत का एक फैसला अखवार में इसी तरह का आया है. उसमें पति को अपने आप को "निर्दोष" साबित करने में "दस" साल लग गए कि उसने या उसके परिवार ने अपनी पत्नी को दहेज के लिए कभी परेशान नहीं किया और ना उसको प्रताडित किया. क्या हमारे देश की पुलिस और न्याय व्यवस्था सभ्य व्यक्तियों को अपराधी बनने के लिए मजबूर नहीं कर रही है ? मैंने ऐसे बहुत उदाहरण देखे है कि जिस घर में पत्नी को कभी मारा पीटा नहीं जाता, उसी घर की पत्नी अपने पति के खिलाफ कानून का सहारा लेती है , जिस घर में हमेशा पति पत्नी को मारता रहता है. वो औरत कभी भी पति के खिलाफ नहीं जाती, क्योकि उसे पता है कि यह अगर अपनी हद पार कर गया तो मेरे सारे परिवार को ख़तम कर देगा , यह समस्या केवल उन पतियों के साथ आती है. जो कुछ ज्यादा ही शरीफ होते है.
जब तक हमारे देश में दहेज विरोधी लड़कों के ऊपर दहेज मांगने के झूठे केस दर्ज होते रहेंगे. तब तक देश में से दहेज प्रथा का अंत सम्भव नहीं है. आज मेरे ऊपर दहेज के झूठे केसों ने मुझे बर्बाद कर दिया. आज तक कोई संस्था मेरी मदद के लिए नहीं आई. सरकार और संस्थाएं दहेज प्रथा के नाम घडयाली आंसू खूब बहाती है, मगर हकीकत में कोई कुछ नहीं करना चाहता है.सिर्फ दिखावे के नाम पर कागजों में खानापूर्ति कर दी जाती है. आप भी अपने विचार यहाँ पर व्यक्त करें. लेखक से becharepati.blogspot.com पर जुड़े .......

Wednesday 27 June 2012

पति के चरित्र पर अंगुली उठाना क्रूरता....

पति के चरित्र पर अंगुली उठाना क्रूरता

 पति के चरित्र पर अंगुली उठाने पर बांबे हाई कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी की है। अदालत ने इसे क्रूरता की श्रेणी में रखते हुए तलाक का पर्याप्त आधार बताया है। अदालत ने यह फैसला पति की तलाक याचिका को स्वीकार करते हुए दिया। साथ ही पति और उसकी बहनों (ननदों) के बीच नाजायज संबंधों का आरोप लगाने वाली महिला की कड़ी आलोचना भी की। न्यायमूर्ति एआर जोशी और एएम खानविल्कर की खंडपीठ ने 21 जून को आदेश दिया, ‘हम पारिवारिक कोर्ट के विवाह-विच्छेद के आदेश को बनाए रखने पर सहमत हैं। पत्नी द्वारा पति पर लगाए गए आरोप, क्रूरता की श्रेणी में आते हैं, इसलिए तलाक की डिक्री दी जाती है।’

 इस बीच हाई कोर्ट ने उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें पारिवारिक अदालत ने महिला व उसकी बेटी को गुजारा भत्ता तथा अलग आवास देने की याचिका को अस्वीकार कर दिया था। अदालत ने कहा कि यह उचित नहीं था और इसे ठीक से नहीं निपटाया गया। हाई कोर्ट ने महिला व उसकी बेटी को फैमिली कोर्ट के समक्ष नए सिरे से गुजारा भत्ता और अलग आवास देने वाली याचिका को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। पति को लिखे पत्र और पारिवारिक न्यायालय के समक्ष मौखिक साक्ष्यों तथा वाद-विवाद के दौरान महिला ने आरोप लगाया था कि उसके पति के अपनी बहनों से नाजायज संबंध हैं। खंडपीठ ने कहा, ‘पत्नी ने 11 मई 2006 को पति को लिखे पत्र में कहा, मुझे आप और आपकी बहनों के बीच नाजायज संबंध होने के संकेत दिखे हैं। ऐसे में हमारी राय में फैमिली कोर्ट द्वारा पारित डिक्री को क्रूरता के आधार पर वैध ठहराया जाना चाहिए।’ न्यायाधीशों ने कहा, ‘हमें इस फैसले में आरोप को बार-बार कहने से बचना चाहिए। उल्लेख करने के लिए इतना ही पर्याप्त है कि यह गंभीर और उपेक्षा करने वाली टिप्पणी है।’

                                                                                                                            रमेश कुमार सिरफिरा
महिला द्वारा पति व ससुराल पर अत्याचार का झूठा मामला बन सकता है तलाक का आधार: हाई कोर्ट

 बम्बई उच्च न्यायालय ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा है कि किसी महिला द्वारा अपने पति तथा ससुराल के लोगों पर अत्याचार का झूठा मामला दर्ज कराना भी तलाक का आधार बन सकता है। अदालत की पीठ ने हाल में एक मामले में तलाक मंजूर करते हुए कहा हमारी नजर में एक झूठे मामले में पति और उसके परिवार के सदस्यों की गिरफ्तारी से हुई उनकी बेइज्जती और तकलीफ मानसिक प्रताड़ना देने के समान है और पति सिर्फ इसी आधार पर तलाक की माँग कर सकता है। न्यायाधीश न्यायमूर्ति एपी देशपांडे तथा न्यायमूर्ति आरपी सोंदुरबलदोता की पीठ ने पारिवारिक अदालत के उस फैसले से असहमति जाहिर की, जिसमें पत्नी द्वारा पति तथा उसके परिजनों के खिलाफ एक शिकायत दर्ज करवाना उस महिला के गलत आरोप लगाने की आदत की तरफ इशारा नहीं करता।

 पीठ ने कहा हम पारिवारिक अदालत की उस मान्यता सम्बन्धी तर्क को नहीं समझ पा रहे हैं कि सिर्फ एक शिकायत के आधार पर पति और उसके परिवार के लोगों की गिरफ्तारी से उन्हें हुई शर्मिंदगी और पीड़ा को मानसिक प्रताड़ना नहीं माना जा सकता। यह बेबुनियाद बात है कि मानसिक प्रताड़ना के लिए एक से ज्यादा शिकायतें दर्ज होना जरूरी है। यह मामला आठ मार्च 2001 को वैवाहिक बंधन में बँधे पुणे के एक दम्पति से जुड़ा है। पति ने आरोप लगाया था कि शादी की रात से ही उसकी पत्नी ने यह कहना शुरू कर दिया था कि उसके साथ छल हुआ है, क्योंकि उसे विश्वास दिलाया गया था कि वह मोटी तनख्वाह पाता है। पति का आरोप है कि उसकी पत्नी ने उसके तथा अपनी सास के खिलाफ क्रूरता का मुकदमा दायर किया था। बहरहाल, निचली अदालत ने सुबूतों के अभाव में दोनों लोगों को आरोपों से बरी कर दिया था। उसके बाद पति ने पारिवारिक अदालत में तलाक की अर्जी दी थी, लेकिन उस अदालत ने कहा कि पत्नी द्वारा एकमात्र शिकायत दर्ज कराने का यह मतलब नहीं है कि उसे झूठे मामले दायर कराने की आदत है। अदालत ने कहा था कि महज इस आधार पर तलाक नहीं लिया जा सकता। बहरहाल, बाद में उच्च न्यायालय ने निचली अदालत के फैसले से असहमति जाहिर की।

                                                                                                                           रमेश कुमार सिरफिरा

तलाक के मामले में बच्चे की डीएनए जाँच तब तक नहीं, जब तक पिता न चाहे

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 उच्चतम न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण व्यवस्था देते हुए कहा है कि तलाक के मामले में किसी बच्चे के डीएनए परीक्षण के आदेश तब तक नहीं दिये जा सकते जब तक पति उसे अपना बच्चा नहीं होने का निश्चित आरोप नहीं लगाता। दूसरे शब्दों में, बच्चे के असल माता-पिता का पता लगाने के लिये उसका डीएनए परीक्षण तभी किया जा सकता है जब पति यह निश्चित आरोप लगाए वह बच्चा किसी दूसरे आदमी का है। हालांकि वह इस बात को तलाक के आधार के तौर पर इस्तेमाल नहीं कर सकता।

 उच्चतम न्यायालय ने कहा कि वैवाहिक सम्बन्ध होने के दौरान बच्चे का जन्म होने की स्थिति में उसकी वैधता की धारणा काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि तलाक की अर्जी दायर होने के वक्त विवाह के दोनों पक्षों का एक दूसरे से जरूरी वास्ता था। खासकर तब जब पति इस बात को जोर देकर ना कहे कि उसकी पत्नी का बच्चा किसी दूसरे मर्द से अवैध सम्बन्धों का नतीजा है। न्यायाधीश न्यायमूर्ति तरुण चटर्जी तथा न्यायमूर्ति आर. एम. लोढ़ा की पीठ ने अपने निर्णय में पति भरतराम द्वारा दायर याचिका पर बच्चे का डीएनए परीक्षण कराने के मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्देश को चुनौती देने वाली रामकन्या बाई द्वारा दायर अपील को बरकरार रखा। उच्च न्यायालय ने पति द्वारा सत्र न्यायालय में तलाक के मुकदमे की कार्यवाही के दौरान बच्चे की वैधता पर सवाल नहीं उठाए जाने के बावजूद उसका डीएनए परीक्षण कराने का निर्देश दिया था।
                                                                                                           
                                                                                                               
                                                                                                                रमेश कुमार सिरफिरा

तलाकशुदा महिलाएं अपने पूर्व पति का नाम और उपनाम इस्तेमाल न करें: हाई कोर्ट

कुछ रोचक जानकारी और ख़बरें आपके द्वारा एकत्र की गई......

तलाकशुदा महिलाएं अपने पूर्व पति का नाम और उपनाम इस्तेमाल न करें: हाई कोर्ट

 एक पुलिस इंस्पेक्टर के मामले की सुनवाई करते हुए मुंबई हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला सुनाया है, जिसके अनुसार तलाकशुदा महिलाओं द्वारा अपने पूर्व पति का नाम और उपनाम इस्तेमाल न करने को कहा गया है। इस इंस्पेक्टर का अपने विवाह के छह महीने बाद ही तलाक हो गया था। 1996 में यह मामला पारिवारिक अदालत में आया। जिसके बाद पहले बांद्रा पारिवारिक न्यायालय ने और बाद में हाईकोर्ट ने तलाक को मंजूरी दे दी। इसके बाद भी इंस्पेक्टर की तलाकशुदा पत्नी ने जब पूरा मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित होने का हवाला देकर उसके नाम और उपनाम का इस्तेमाल करना जारी रखा, तो इंस्पेक्टर ने बांद्रा फैमिली कोर्ट में याचिका दायर कर इसका विरोध किया।
 इस पर पिछले वर्ष मुंबई फैमिली कोर्ट के न्यायाधीश आर.आर. वाछा ने महिला के तलाकशुदा होने की पुष्टि होने पर उसे अपने पूर्व पति के नाम और उपनाम का इस्तेमाल न करने का आदेश दिया। फैमिली कोर्ट के इसी फैसले को उक्त महिला ने मुंबई हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट के न्यायाधीश रोशन दलवी ने अब फैमिली कोर्ट के फैसले को जायज ठहराते हुए कहा है कि तलाकशुदा महिला अपने पूर्व पति का नाम और उपनाम इस्तेमाल करना न सिर्फ बंद करें बल्कि बैंक खातों में भी इसका उल्लेख करना बंद करे। मुंबई हाईकोर्ट का यह फैसला कई मायनों में काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस फैसले के आने के बाद अब भविष्य में बड़े राजनीतिक या औद्योगिक घरानों में विवाह होने के बाद तलाक लेने वाली महिलाओं को अपने पूर्व पति का नाम और उपनाम इस्तेमाल करना बंद करना पड़ सकता है।

कुछ रोचक खबरे ...और आपकी राय ......

कुछ रोचक खबरे ...और आपकी राय ......

अपनी मर्जी से मायके में रह रही महिला को भरण-पोषण की राशि पाने का अधिकार नहीं

 जबलपुर के पारिवारिक न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था दी है कि अपनी मर्जी से मायके में रह रही महिला को भरण-पोषण पाने का हक नहीं है। विशेष न्यायाधीश शशिकिरण दुबे द्वारा एक महिला द्वारा दायर अर्जी खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी। श्रीमती आराधना की ओर से दायर अर्जी पर हुई सुनवाई के दौरान महिला की ओर से पति दीपक से भरण-पोषण की राशि दिलाए जाने की प्रार्थना की गई थी। सुनवाई के दौरान महिला ने स्वीकार किया था कि वह ससुराल वालों के साथ व्यवस्थित नहीं हो पा रही है, इसलिए वह अपने पति से बंधन मुक्त होना चाहती है। उसने इस आशय का एक पत्र अपने पिता को भी लिखा था कि ससुराल में उसका मन नहीं लगता। इन तमाम बातों पर गौर करने के बाद अदालत ने अर्जी पर फैसला देते हुए कहा कि यह पत्नी द्वारा पति का स्वैच्छिक परित्याग माना जाएगा। पति भले ही कमाई कर रहा हो, लेकिन अपनी मर्जी से मायके में रह रही महिला भरण-पोषण की राशि पाने का अधिकार खो चुकी है।
 इस मत के साथ अदालत ने महिला की अर्जी खारिज कर दी।

पति की सहमति बिना, पत्नी द्वारा गर्भपात कराना, तलाक का आधार है

 सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि अपने पति की सहमति के बिना किसी महिला द्वारा गर्भपात कराना मानसिक प्रताड़ना के समान है। उसका पति इस आधार पर तलाक मांगने का हकदार है। न्यायालय ने सुधीर कपूर की इस अर्जी को उचित ठहराया कि वह हिंदू विवाह कानून के तहत तलाक पाने का हकदार है क्योंकि उसकी पत्नी सुमन कपूर ने उसकी रजामंदी के बगैर तीन बार गर्भपात कराया। सुधीर ने आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी ने गर्भपात कराये क्योंकि वह परिवार को आगे बढ़ाने के बजाय अमेरिका में अपना करियर बनाना चाहती थी। उसने यह भी आरोप लगाया कि सुमन ने उसके माता पिता और परिवार के अन्य सदस्यों का लगातार अपमान किया। एक वैवाहिक अदालत ने इन आरोपों के आधार पर सुधीर को तलाक की मंजूरी दी। महिला ने दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया। उच्च न्यायालय ने वैवाहिक अदालत के फैसले की पुष्टि की। इसके बाद सुमन ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की। सर्वोच्च न्यायालय ने रिकॉर्ड और कई न्यायिक फैसलों का उल्लेख करते हुए कहा कि सुमन का कार्य मानसिक प्रताड़ना के बराबर है और उसका पति तलाक का हकदार है।

रमेश कुमार सिरफिरा द्वारा एकत्र की गई जानकारी ....

क्यूं भाते हैं अधिक उम्र के पुरुष ?

क्यूं भाते हैं अधिक उम्र के पुरुष ?
हर लड़की अपने लिए ऐसे लड़के की तलाश करती है जो जवान हो, खूबसूरत हो. लेकिन कुछ लड़कियां अक्सर ऐसे लड़कों को अपना जीवनसाथी और प्यार बनाना चाहती हैं जो उम्रदराज और अनुभवी होता है. ऐसा साथी चुनने के पीछे उनकी दलील भी बहुत ही अजीब ही होती है. यूं तो यह एक लड़की के दिल की बात है जिस दिल को खुदा भी नहीं समझ सकता है. लेकिन महिलाओं की इस आदत के पीछे की दलीलें और वजह ऐसी हैं जिन्हें जानने के बाद यह सही भी लगता है. आइए जानें आखिर महिलाओं को क्यों भाते हैं अधिक उम्र के पुरुष:

प्यार से रखने वाले

अनुभव जीवन को ना सिर्फ सुंदर बनाता है बल्कि यह इंसान के साथ रहने वाले जीवन को भी सुंदर बना देता है. उम्रदराज और अकसर तलाक शुदा पुरुषों को लड़कियों के बारे में अधिक अनुभव होता है इसलिए उनसे महिलाएं अधिक प्यार की उम्मीद करती हैं. यह सही भी है. जब आपके पास कोई मोबाइल हो और आपने उसे चलाया हो तो आपको दूसरे मोबाइल चलाने में भी अधिक मेहनत नहीं करनी पड़ती. अब यह महिलाएं भी किसी मशीन से कम जटिल नहीं हैं.

रोमांस फैक्टर

यूं तो रोमांस की कोई उम्र नहीं होती लेकिन कहते हैं जिस तरह शराब जितनी पुरानी हो उतनी सर चढ़कर बोलती है उसी तरह रोमांस की उम्र जितनी पुरानी हो उसमें नशा उतना ही होता है. अधिक उम्र के होने के बाद पुरुषों में रोमांस का स्तर बढ़ जाता है और वह अपने पार्टनर को पूरा समय और प्यार देते हैं.

नहीं होता अहम का टकराव

अकसर देखने में आता है कि युवा वर्ग अपने अहम की वजह से रिश्तों को तोड़ देता है लेकिन एक उम्र के बाद पुरुषों के अंदर अहम का भाव खत्म हो जाता है और वह महिलाओं को भी अपनी जिंदगी में समान अधिकार देते हैं और रिश्ते में पूरा स्पेस देते हैं.

हमेशा तैयार

अधिक समय तक काम करने के बाद अकसर उम्रदराज पुरुष प्यार करने और रोमांस के लिए समय निकालने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं.

सरप्राइज (Surprises)  मिलने के रहते हैं अधिक चांस

गिफ्ट्स हर लड़की को पसंद होते हैं. जितने ज्यादा गिफ्ट उतना इन लड़कियों के दिल में जगह और यह बात तो प्रमाणित है कि उम्रदराज पुरुष युवाओं के मुकाबले अधिक गिफ्ट्स देते हैं.

मिस्टर मनीबैग (Moneybag)

उम्रदराज पुरुष के पास पैसे की ज्यादा समस्या नहीं होती और एक रिश्ते को स्थिर रखने में पैसे का कितना अहम रोल होता है यह सभी जानते हैं. लड़कियों के खर्चे को हंसते-हंसते स्वीकार करने की कला इन पुरुषों को बनाती है लड़कियों की पहली पसंद.
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Sunday 3 June 2012

सजने-संवरने में जिंदगी के तीन साल गंवा दिए !

सजने-संवरने में जिंदगी के तीन साल गंवा दिए !

पत्नियों को शायद यह पसंद न आए लेकिन एक ताजा अध्ययन के मुताबिक महिलाएं घर के बाहर निकलने से पहले सजने-संवरने में अपनी जिंदगी के महत्वपूर्ण तीन साल गंवा देती हैं।

औसतन महिलाएं रात में किसी बड़े आयोजन में जाने से पहले सजने-संवरने में सवा घंटा लगाती हैं। इसमें आखिरी समय में पहने हुए कपड़े बदलना, कपड़े को ठीक तरह से आईने के सामने खड़े होकर निहारना और अपने पर्स या हैंडबैग में चीजें ढूंढना शामिल है।

यह जानकर हैरानी होगी कि आमतौर पर महिलाएं नहाने और पैरों से बाल साफ करने में 22 मिनट, चेहरे या शरीर पर मॉइश्चराइजर या सन्सक्रीन लगाने में सात मिनट, 23 मिनट बाल संवारने में और 14 मिनट मेक-अप करने में लगती हैं। सही मायने में कपड़े पहनने में वे केवल छह मिनट लगाती हैं।

महिलाएं आमतौर पर हर सुबह काम पर जाने से पहले तैयार होने में 40 मिनट लेती हैं और यह सजना-संवरना उनकी जिंदगी के दो साल और नौ महीने खा जाता है।

पुरुषों की बात करें तो वे अपनी साथी द्वारा हैंडबैग खरीदने और एक और जोड़ी जूते पहनकर देखते वक्त उनके इंतजार में अपनी जिंदगी के तीन महीने गंवा देते हैं।

पुरुषों को अपनी साथी महिलाओं के तैयार होने और कपड़े पहनकर देखने की पूरी प्रक्रिया में बाहर खड़े रहकर इंतजार में 17 मिनट और 25 सेकंड लगाना पड़ता है।

डेली मेल के मुताबिक यह अध्ययन शार्लोट न्यूबर्ट द्वारा किया गया है।

इस जानकारी के बाद यह जानकर हैरत नहीं होगी कि अध्ययन के मुताबिक 70 प्रतिशत पुरुष इस तरह इंतजार करने से चिढ़ते हैं और 10 फीसदी पुरुषों ने तो इस कारण संबंध ही खत्म कर दिए हैं।

पत्नी कैसे बदलती है ... पुत्र की भावनाएँ पिता के लिए

पत्नी कैसे बदलती है ...

शादी के बाद पत्नी कैसे बदलती है, जरा गौर कीजिए...

पहले साल: मैंने कहा जी खाना खा लीजिए, आपने काफी देर से कुछ खाया नहीं .
दूसरे साल: जी खाना तैयार है, लगा दूं ?
तीसरे साल: खाना बन चुका है, जब खाना हो तब बता देना.
चौथे साल: खाना बनाकर रख दिया है, मैं बाजार जा रही हूं, खुद ही निकालकर खा लेना.
पांचवे साल: मैं कहती हूं आज मुझसे खाना नहीं बनेगा, होटल से ले आओ.
छठे साल: जब देखो खाना, खाना और खाना, अभी सुबह ही तो खाया था ...


पुत्र की भावनाएँ पिता के लिए

इस पितृ-दिवस (Father's Day) पर बड़ी मजेदार चीज़ दिखी। आप भी आनंद उठाईये।

एक बेटा अपनी उम्र में क्या सोचता है?
४ साल - मेरे पापा महान हैं।
६ साल - मेरे पापा सब कुछ जानते हैं।
१० साल - मेरे पापा अच्छे हैं, लेकिन गुस्सैल हैं।
१२ साल - मेरे पापा, मेरे लिए बहुत अच्छे थे, जब मैं छोटा था।
१४ साल - मेरे पापा चिड़चिड़ाते हैं।
१६ साल - मेरे पापा ज़माने के हिसाब से नहीं चलते।
१८ साल - मेरे पापा हर बात पर नुक्ताचीनी करते हैं।
२० साल - मेरे पापा को तो बर्दाश्त करना मुश्किल होता जा रहा है, पता नही माँ इन्हें कैसे बर्दाश्त करती है?
२५ साल - मेरे पापा तो हर बात पर एतराज़ करते हैं।
३० साल - मुझे अपने बेटे को संभालना तो मुश्किल होता जा रहा है। जब मैं छोटा था, तब मैं अपने पापा से बहुत डरता था।
४० साल - मेरे पापा ने मुझे बहुत अनुशासन के साथ पाल-पोस कर बड़ा किया, मैं भी अपने बेटे को वैसा ही सिखाऊंगा।
४५ साल - मैं तो हैरान हूँ किस तरह से मेरे पापा ने मुझको इतना बड़ा किया।
५० साल - मेरे पापा ने मुझे पालने में काफी मुश्किलें ऊठाईं। मुझे तो तो बेटे को संभालना मुश्किल हो रहा है।
५५ साल - मेरे पापा कितने दूरदर्शी थे और उन्होंने मेरे लिए सभी चीजें कितनी योजना से तैयार की। वे अपने आप में अद्वितीय हैं, उनके जैसा कोई भी नहीं।
६० साल - मेरे पापा महान हैं.

टाई लगायी, मूंछ कटायी, फिर भी मामला गड़बड़ है

टाई लगायी, मूंछ कटायी, फिर भी मामला गड़बड़ है

शहरी लुक देने के चक्कर में बीवी ने उसकी शानदार मूंछेकटवा दी। गांव में उसे टाई लगाकर घूमने के लिए दबाव बनाती है। गांव के युवक को शहरी बनाने के सपने देखने वाली एक ब्याहता अपने पति और ससुरलियों पर मारपीट करने का आरोप लगा रही है, जबकि उसके पति ने महिला पर ही आरोप लगाते हुए कहा कि उसे शहरी बनाने के चक्कर और घरेलू काम न करने के चलते विवाद हो रहा है। फिलहाल मामला परिवार परामर्श केंद्र में है।

अमर उजाला में आयी इस ख़बर के मुताबिक, विजयनगर, गाजियाबाद के रहने वाले इस युवक की शादी 30 जनवरी 2005 को दिल्ली निवासी युवती के साथ हुई थी। युवती का आरोप है कि शादी के बाद से ही उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाने लगा। उससे दहेज की मांग की गई, मांग पूरी न होने पर उसके साथ मारपीट की गई। इन हालातों में उसका ससुराल में रहाना दूभर हो गया। जिसके चलते वह काफी दिनों से अपने मायके में रह रही है।

दूसरी तरफ, विवाहिता का पति दूसरा ही मामला बता रहा है। उसका कहना है की उसकी बीवी न तो ढंग का खाना बना पाती है, न ही कोई घरेलू काम करती है। साथ ही गांव के माहौल में रहने के बावूजद उसे शहरी लुक देने के चक्कर में लगी रहती है। वह मूंछे रखता था, उन्हें उसने कटवा दिया। इतना ही नहीं, टाई लगाने के लिए जोर देती है। कई बार वह लगा भी चुका है, लेकिन बार-बार उसके लिए यह सब करना बहुत मुश्किल है। गांव के माहौल में उसे यह सब करना बहुत अजीब लगता है। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाए। परिवार परामर्श केंद्र के काउंसलरों के मुताबिक, दोनों पक्ष समझाने पर साथ रहने के राजी हो गए हैं। अब कुछ शर्तों के तहत ब्याहता को उसके ससुराल भेजा जाएगा।

स्त्री-पुरुष के विपरीत स्वभाव पर दिलचस्प जानकारियाँ

स्त्री-पुरुष के विपरीत स्वभाव पर दिलचस्प जानकारियाँ

पुरुष और महिलाएं भले ही हमराही हो गए हों, लेकिन दोनों का मूल स्वभाव आज भी अलग-अलग है। हर काम करने का दोनों का अंदाज़ एक-दूसरे से बिल्कुल जुदा होता है। पुरुषों को स्वभाव से आक्रामक, प्रतियोगिता में विश्वास रखने वाला और अपनी बातों को छिपाने में माहिर माना जाता है। दोस्तों से बातचीत में पुरुष अपने सारे राज़ भले ही खोल दें, लेकिन किसी अजनबी से गुफ्तगू में पूरी सावधानी बरतते हैं। कारण, उनकी किसी बात से विरोधी फायदा न उठा सकें। पुरुष आमतौर पर अपने कामकाज़ में किसी तरह की दखलंदाज़ी बर्दाश्त नहीं करते।

आपको यह जानकर हैरत होगी कि बड़े से बड़ा नुकसान होने और बहुत ज़्यादा खुशी दोनों ही हालत में पुरुष सेक्स की ज़रूरत शिद्दत से महसूस करते हैं। वे इसे तनाव से मुक्ति पाने वाला भी मानते हैं। वहीं, महिलाएं पुरुष-मित्र या पति से झगड़ा होने पर चाहती हैं कि उनकी बात को पूरी तरह सुना जाए, लेकिन अगर कोई प्रेमी अपनी प्रेमिका से झगड़े के बाद उसे अपनी मज़बूत बांहों का सहारा देता है और दिल से उससे माफी मांग लेता है, तो महिलाएं सब कुछ तुरंत भूल जाती हैं। महिलाएं तारीखों का काफी हिसाब-किताब रखती हैं। उन्हें अपने जीवनसाथी या पुरुष-मित्र के साथ-साथ दोस्तों, परिचितों और पारिवारिक सदस्यों के जन्मदिन और सालगिरह की तारीखें याद रहती हैं, जबकि पुरुष कभी-कभी अपनी महिला-मित्र या पत्नी का भी जन्मदिन भूल जाते हैं।

महिलायें एक समय पर कई काम कर सकती हैं। वे फोन पर बात करते-करते टीवी देख सकती हैं। डिनर तैयार करते समय बच्चों की निगरानी कर सकती हैं, लेकिन पुरुष एक समय में एक ही काम करने में विश्वास रखते हैं।
पुरुषों के मुकाबले महिलाएं संकेत पहचानने में ज़्यादा माहिर होती हैं, लेकिन वे दिल के मामले में अपनी बात किसी पर जल्दी ज़ाहिर नहीं करतीं। महिलाएं अपने साथी की आंखों, बातों और उसके चेहरे के हाव-भाव से उसकी चाहत का अंदाज़ा बखूबी लगा लेती हैं, लेकिन किसी से कुछ कहतीं नहीं। जबकि पुरुष 'वो मुझे चाहती है, वो मुझे नहीं चाहती' की भूलभुलैया में भटकते रहते हैं।

पुरुष किसी भी चीज़ की ज़रूरत होने पर बड़ी आसानी से उसकी मांग कर देते हैं, पर महिलाएं अपनी पसंद की चीज़ की तरफ पहले केवल इशारा ही करती हैं। इसे न समझने पर वह अपनी मांग शब्दों से ज़ाहिर करती हैं। महिलाएं आमतौर पर अपने बच्चों की तमाम ज़रूरतों के प्रति सजग रहती हैं। उनकी पढ़ाई, अच्छे दोस्तों, प्रिय खाद्य पदार्थ , उनकी आशाओं और सपनों से वे पूरी तरह वाकिफ होती हैं, जबकि पुरुषों का ज़्यादातर समय बाहर बीतता है, इसलिए वे अपने बच्चों को उतनी अच्छी तरह नहीं जान पाते।

महिलाएं टीवी देखते समय एक ही चैनल पर ज़्यादा समय तक टिक सकती हैं। किस चैनल पर उनका पसंदीदा प्रोग्राम कब आएगा, यह उन्हें अच्छी तरह पता होता है, वहीं पुरुष एक समय में छह या सात चैनल देखते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं पता होता कि कुछ समय पहले वे किस चैनल पर कौन-सा कार्यक्रम देख रहे थे! महिलाओं को सोने के लिए पूरी शांति की ज़रूरत होती है। हो सकता है कि एक बल्ब जलता रहने पर वह चैन से न सो पाएं, जबकि पुरुष शोर में भी 'घोड़े बेचकर' सो सकते हैं। चाहे कुत्ते भौंक रहे हों, तेज़ आवाज़ में गाना बज रहा हो या बच्चे ऊधम मचा रहे हों, अगर उन्हें सोना है, तो फिर कोई भी चीज़ उनके लिए कोई मायने नहीं रखती।
(हैलो दिल्ली, नवभारत टाइम्स से साभार)

करवा चौथ के दिन भी महिलाएं पतियों के खिलाफ कार्रवाई पर अड़ीं

करवा चौथ के दिन भी महिलाएं पतियों के खिलाफ कार्रवाई पर अड़ीं
करवा चौथ के दिन जहां पत्नियां अपने पतियों की लंबी उम्र और सलामती के लिये व्रत रख रही थीं। वहीं जबलपुर के परिवार परामर्श केन्द्र में अनेक पत्नियां अपने पतियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई किये जाने के अलावा किसी प्रकार के समाधान के लिये सहमत नहीं हुई। परिवार परामर्श केन्द्र से प्राप्त जानकारी के अनुसार करवा चौथ के दिन केन्द्र में वैवाहिक विवाद के 42 मामलों की सुनवाई की गयी। केन्द्र में ऐसा पहली बार हुआ कि इन 42 मामलों में एक भी निपटारा आपसी समझौते से नहीं हो पाया।

सुनवाई के दौरान पति पीड़ित अधिकांश पत्नियां करवा चौथ होने के बावजूद परिवार परामर्श के सलाहकारों के समक्ष पतियों एवं ससुराल पक्ष के लोगों के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने के अलावा किसी प्रकार के समाधान के लिये सहमत नहीं थी। सलाहकारों की समझाइश के बावजूद 12 मामलों में विवादित परिजनों ने आपसी सहमति से अलग-अलग रहने एवं विधि अनुसार आचरण करने का निर्णय लिया। इसके साथ ही आठ पतियों द्वारा पत्नियों से पीडित होकर आवेदन प्रस्तुत किये थे। लेकिन उनकी पत्नियां दिन भर के इंतजार के बाद भी नहीं आईं। सलाहकारों ने ऐसे पतियों को न्यायालय की शरण लेने की सलाह दी।

एक महिला, सताये गए पतियों के लिए लड़ रही: कहती है कि पति भी आखिर इंसान हैं

एक महिला, सताये गए पतियों के लिए लड़ रही: कहती है कि पति भी आखिर इंसान हैं

पतियों से पीडित पत्नियों के हक के लिये कई संगठन संघर्ष कर रहे हैं लेकिन पत्नियों के हाथों सताये गये पतियों के हक में लडाई लडने के लिये आल इंडिया फॉरगौटेन वुमेन. बनाया गया है । इस संगठन की अध्यक्षा उमा चल्ला का कहना है कि हर दिन पतियों एवं उनके परिवार वालों के खिलाफ अनेक फर्जी मामले देश भर में दर्ज किये जा रहे हैं और फर्जी शिकायतों के आधार पर निर्दोष पुरूषों एवं उनके सगे.संबधियों को जेलों में डाला जा रहा है। यह संगठन न केवल पतियों के बल्कि पत्नियों एवं सास के हकों के लिये भी संघर्ष कर रहा है।

श्रीमती उमा ने कहा कि उनके संगठन का लक्ष्य लैंगिक विषमताओं एवं भेदभाव से उपर उठकर हर किसी के हितों की रक्षा के लिये संघर्ष करना है। उन्होंने बताया कि संगठन ने अपने अध्ययन के दौरान पाया कि घरों में छोटे.मोटे झगडों एवं मनमुनाव के बाद कई महिलायें अपने पतियों एवं सास.श्वसुर को ब्लैकमेल करती है।

कोई भी सफल महिला अपने घर से लड़कर सफल नहीं हुई बल्कि परिवार का साथ पाकर ही सफल बनी है

क़ानून के दुरुपयोग से पीड़ित पति
आजकल भारत में झूठे मामले में पतियों को पत्नियों द्वारा फ़साना आम बात हो गयी है । यदि किसी पत्नी को पति को काबू में रखना है और पति काबू में आने से मना कर दे तो 498A और DV जैसे क़ानून पत्नियों की सहायता करने के लिए तत्पर हैं। यदि पत्नी को पति का अपने माँ बाप की सहायता करना अच्छा नहीं लगता तो भी वह इन क़ानून की आड़ लेकर पति तो फसा सकती है।
 
कोई भी सफल महिला अपने घर से लड़कर सफल नहीं हुई बल्कि परिवार का साथ पाकर ही सफल बनी है
Tuesday 23 February 2010
आज के अखबार में खबर पढ़ी। कुछ अनोखी सी लगी। अनोखी इसलिए कि अपने प्रदेश में नामी वकील रहीं और अब रायपुर की मेयर बनीं किरणमयी नायक ने जो कुछ कहा वह आज की कथित प्रगतिशील महिलाओं को शायद हजम ना हो।

कल आयोजित किए गए एक दिवसीय कार्यशाला में नुख्य अतिथि की आसंदी से रायपुर निगम की महापौर किरणमयी नायक ने कहा कि किस्सा यहाँ एक के साथ चार फ़्री का है! दहेज की रिपोर्ट दर्ज कराते वक्त महिलाएं इस मुगालते में रहती हैं कि बस रिपोर्ट दर्ज कराई और ससुराल वालों को सजा मिल जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं होता। वह दहेज की एक रिपोर्ट लिखवाती है और बदले में उसे चार केस भुगतने पड़ते हैं यानि तलाक, मेंटेनेंस, संपत्ति में अधिकार और बच्चे हैं तो उसकी गार्जनशिप का मामला भी उसे फेस करने होते हैं। अकेले परिवार की जिद और सास-ससुर को नहीं रखने वाली महिला कहीं की नहीं रह जाती और दहेज का मामला दायर करने के बाद वह वापस भी नहीं जा पाती। उन्होंने महिलाओं से कहा कि अपने घर को जोड़कर रखें न कि अपने घर के मामले को पुलिस थाने तक ले कर जाएं। उन्होंने कहा कि कोई भी सफल महिला अपने घर से लड़कर सफल नहीं हुई बल्कि परिवार का साथ पाकर ही सफल बनी है, इसलिए अपने अधिकारों से ज्यादा कर्तव्यों को निभाना सीखें।

Saturday 2 June 2012

ऐसा नहीं है   कि दहेज के लिए लड़कियों को सताने के मामले कम हो गए हैं। अब भी हर रोज कहीं कहीं से दहेज उत्पीड़न की खबरें आती रहती हैं। दहेज हत्याओं का सिलसिला भी जारी है। हालांकि दहेज प्रताड़ना और घरेलू हिंसा का दूसरा पहलू भी कम चिंताजनक नहीं है। यह है दहेज कानून की आड़ में लड़के और उसके परिवारवालों को तंग करना , दहेज के झूठे मामले दर्ज कराना। महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने कानूनों का धड़ल्ले से गलत इस्तेमाल हो रहा है। इसी का नतीजा है कि महिला मुक्ति की तर्ज पर पुरुष भी अपने हकों के लिए एकजुट होने लगे हैं। 
मजाक के लिए   तराशे गए जुमले ' मुझे मेरी बीवी से बचाओ ' अब हकीकत बन चुके हैं। बीवियों के सताए पति त्रस्त होकर ऐसी गुहार लगा रहे हैं। ' दहेज और घरेलू हिंसा कानून की आड़ में अगर बीवी सताए तो हमें बताएं ' लिखे पोस्टर मेट्रो सिटीज में आम हो गए हैं। कुछ लोग पहचान छुपाकर अत्याचार का शिकार पुरुषों की मदद कर रहे हैं , तो कुछ सड़कों से लेकर कोर्ट तक और मीडिया से लेकर इंटरनेट तक के जरिए अपनी आवाज बुलंद कर रहे हैं।

2005 में तीन ऐसे ही लोगों से शुरू हुए ग्रुप के साथ अब दुनिया भर में एक लाख से ज्यादा ऐक्टिव मेंबर जुड़ चुके हैं। पढ़े लिखे , मैनिजमंट , आईटी , टेलिकॉम , बैंकिंग , सर्विस इंडस्ट्री , ब्यूरोक्रेट्स सरीखे सभी फील्ड के प्रफेशनल्स ने मिलकर ' सेव फैमिली फाउंडेशन ' बनाई है। इनका दावा है कि दिल्ली - एनसीआर में 5 लाख ऐसे लोग हैं , जो कथित तौर पर पत्नियों के पक्ष में बने एकतरफा कानून (498 और घरेलू हिंसा कानून ) से पीड़ित हैं या इसे झेल चुके हैं।

आजादी की आस
अत्याचार के शिकार पति इस बार स्वतंत्रता दिवस पारंपरिक तरीके से नहीं मनाने वाले हैं। देश भर से करीब 30 हजार लोगों के प्रतिनिधि के तौर पर अलग - अलग शहरों से सैकड़ों पति 15 अगस्त को शिमला में इकट्ठे हो रहे हैं। ये अत्याचार से आजादी के लिए रणनीति तैयार करेंगे। इनका मानना है कि ये स्त्री केंद्रित समाज में लगातार जकड़ते जा रहे हैं। इन्होंने ऐलान किया है कि ये तब तक स्वतंत्रता दिवस नहीं मनाएंगे , जब तक इनकी मांगें पूरी नहीं हो जातीं। इनकी मांगे हैं - महिला और बाल कल्याण मंत्रालय की तर्ज पर पुरुष कल्याण मंत्रालय बनाया जाए , घरेलू हिंसा एक्ट में बदलाव किया जाए और तलाकशुदा जोड़े के बच्चों की जॉइंट कस्टडी दी जाए।
मर्द को भी होता है दर्द
पुरुष घरेलू हिंसा के शिकार होते हैं या नहीं , इसे लेकर अब तक कोई सरकारी स्टडी नहीं हुई है , लेकिन ' सेव इंडियन फैमिली फाउंडेशन ' और ' माई नेशन ' की एक स्टडी के मुताबिक 98 फीसदी भारतीय पति तीन साल की रिलेशनशिप में कम से कम एक बार इसका सामना कर चुके हैं। इस ऑनलाइन स्टडी में शामिल 25.21 फीसदी शारीरिक , 22.18 फीसदी मौखिक और भावनात्मक , 32.79 फीसदी आर्थिक हिंसा के शिकार बने जबकि 17.82 फीसदी पतियों को ' सेक्सुअल अब्यूज ' झेलना पड़ा।

स्टडी रिपोर्ट में कहा गया कि जब पुरुषों ने अपनी समस्या , पत्नी द्वारा अपने और परिवार वालों के शोषण के बारे में बताना चाहा तो कोई सुनने को ही तैयार नहीं हुआ। उल्टा सब उन पर हंसे। कई ने स्वीकारा कि उन्हें किसी को यह बताने में शर्म आती है कि उनकी पत्नी उन्हें पीटती है। स्टडी में विभिन्न सामाजिक और आर्थिक वर्ग के लोगों को शामिल किया गया था। इसमें ज्यादातर मिडल क्लास और अपर मिडल क्लास के थे। ऐसे में सवाल उठता है कि जब पुरुष भी घरेलू हिंसा का शिकार बनता है , तो कानून में उसे संरक्षण क्यों नहीं मिलता। विकसित देशों की तरह घरेलू हिंसा ऐक्ट महिला और पुरुष के लिए बराबर क्यों नहीं है ?

498 के बारे में कुछ फैक्ट
- गिरफ्तार किए गए लोगों में से 94 फीसदी लोग दोषी नहीं पाए गए। ( प्री और पोस्ट ट्रायल )
- ट्रायल पूरा होने के बाद 85 फीसदी दोषी नहीं पाए गए , लेकिन इन्हें भी बिना किसी जांच के गिरफ्तार किया गया।
- यूपी के खीरी जिले में ही सात सालों में 498 के तहत 1000 नाबालिग लड़कियां बिना किसी जांच के गिरफ्तार की गईं।
- क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम में रिफॉर्म्स को लेकर बनी जस्टिस मलिमथ कमिटी ने भी 2005 में अपनी रिपोर्ट में 498 को जमानती और कंपाउंडेबल बनाने की सिफारिश की थी।

कानून , मिसयूज और सुझाव

आईपीसी 498
क्या है कानून - अगर किसी महिला को उसका पति या पति के रिश्तेदार दहेज के लिए प्रताडि़त करते हैं तो इसके तहत उन्हें तीन साल की सजा हो सकती है। इसके दायरे में दूरदराज के रिश्तेदार जैसे शादीशुदा बहन का पति ( चाहे वह वहां रहता हो या नहीं ) भी शामिल हो सकता हैं। यह संज्ञेय अपराध है। मतलब बिना कोर्ट के आदेश के पुलिस उनको गिरफ्तार कर सकती है जिनका नाम एफआईआर में है। यह गैर - जमानती है। कोर्ट से ही जमानत ली जा सकती है और कोर्ट पर निर्भर है कि कितने दिन में जमानत दे।

कैसे होता है मिसयूज - पुलिस बिना किसी जांच और सबूत के एफआईआर में नामजद लोगों को गिरफ्तार करती है। ससुराल पक्ष के लोगों को परेशान करने की नीयत से सबका नाम एफआईआर में डलवाया जा रहा है। जिन्होंने एफआईआर करवाई है , वह जमानत के लिए विरोध करने के नाम पर मनचाही रकम वसूल रहे हैं। उन राज्यों में जहां लॉ ऐंड ऑर्डर की हालात ज्यादा खस्ता है , इसका सबसे ज्यादा मिसयूज होता है। यूपी में तो स्टेट अमेंडमंट हैं कि अंतरिम जमानत नहीं मिल सकती।

कैसे रुके मिसयूज - 498 में कोई भी शिकायत आए तो गिरफ्तारी तब तक ना हो जब तक कोई सबूत या साक्ष्य उपलब्ध हों। एफआईआर में जो आरोप हैं ( जैसे - लाखों रुपये शादी में खर्च किए ) उसे साबित करने के लिए दो विटनस या डॉक्युमंट एफआईआर करते वक्त ही मांगे जाएं। अभी सिर्फ आरोप लगाना काफी माना जाता है। हालांकि उत्तराखंड जैसे कुछ स्टेट में प्रशासनिक स्तर पर बिना किसी ऑर्डर या नोटिस के इसे फॉलो किया जा रहा है। एफआईआर करने वाले को एफआईआर में शामिल लोगों से कोई मोटी रकम ना दिलाई जाए। इससे लालच बढ़ता है और मिसयूज की संभावना भी। दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस एस . एन . ढींगरा के एक जजमंट पर दिल्ली पुलिस कमिश्नर ने गाइडलाइंस जारी की है कि एफआईआर में लाखों रुपये दहेज में देने के आरोप की जांच करें। अरेस्ट करने के लिए सीनियर पुलिस ऑफिसर की रिकमंडेशन लें और एफआईआर भी करें तो सीनियर पुलिस ऑफिसर की रिकमंडेशन लें।

डोमेस्टिक वॉयलंस ऐक्ट 2005
क्या है कानून - इसमें महिला अपने साथ हुए फिजिकल , इमोशनल , इकॉनमिक , सेक्सुअल वॉयलंस की शिकायत कर सकती है। शिकायत करने वाली महिला कोर्ट से संरक्षण , रहने के अधिकार , बच्चे की कस्टडी और मेंटेनेंस को लेकर ऑर्डर मांग सकती है। यह संज्ञेय या असंज्ञेय के तहत नहीं आता। कोई भी महिला पुलिस से , कोर्ट से या प्रोटेक्शन ऑफिसर से शिकायत कर सकती है। इसमें स्पीडी ट्रायल होता है। कोर्ट 60 दिनों के भीतर केस खत्म करने की कोशिश करती है।

कैसे होता है मिसयूज - अगर कोई लड़की यह शिकायत करे कि उसे घर में मारापीटा जा रहा है और घर से निकाल दिया है , तो वह कोर्ट से इस कानून के तहत रेजिडंस राइट मांग सकती है। झूठे आरोप लगाकर कोई भी लड़की ससुरालवालों को घर से बाहर निकलवा सकती है। इमोशनल वॉयलंस का आरोप लगा सकती है , जिसका कोई पैमाना नहीं है।

कैसे रुके मिसयूज - यह कानून अमेरिका के कानून की तर्ज पर बनाया गया , लेकिन वहां यह कानून जेंडर न्यूट्रल है। वहां बिना जांच पड़ताल और बिना सबूत के कोई ऐक्शन नहीं लिया जाता। हमारे कानून में इसका जिक्र नहीं कि किस तरह इसकी जांच हो। मिसयूज रोकने के लिए जांच की एक प्रक्रिया बनाई जा सकती है और इसे महिला , पुरुष के लिए समान बनाया जा सकता है।
( सुप्रीम कोर्ट में एडवोकेट महेश तिवारी से बातचीत के आधार पर )


'498A.org' नाम से बने एक ग्रुप को ऑनलाइन मिलीं तीन शिकायतें

पीड़ित -1, नई दिल्ली
मैं एक सरकारी कर्मचारी हूं। शादी के बाद मैं , मेरी पत्नी और मेरे पेरंट्स साथ रहते हैं। दिक्कत तब शुरू हुई जब मेरे भाई का यहां ट्रांसफर हो गया। तब पिता ने हमें एक दूसरा बड़ा कमरा देकर उस कमरे को छोटे भाई को दे दिया। तब मेरी पत्नी घर पर नहीं थी। जैसे ही वह आई तो मेरे पेरंट्स पर चिल्लाने लगी कि उसका कमरा क्यों चेंज कर दिया है। उसने बेहद गलत शब्दों का इस्तेमाल किया और अपने और मेरी मां के गहने , जो उसे पार्टी में पहनने के लिए दिए थे , लेकर अपने मायके चली गई। एक महीना हो चुका है। मैं जब भी उससे बात करता हूं तो वह कहती है , हम अकेले रहेंगे। मैं अपना परिवार नहीं छोड़ना चाहता। शादी के बाद से वह हर रोज अपनी मां से मिलने जाती थी। उनका घर हमारे घर से 5-6 किलोमीटर दूर है। जब कभी मैं उसे वहां जाने को कहता तो वह मुझे खुदकुशी की धमकी देती। अभी वह प्रेग्नंट है और अब उसके घर वाले अफवाह फैला रहे हैं कि हम उसे मारते थे और हमने उसे घर से बाहर फेंक दिया। आप बताइये मैं क्या करूं ? बेहद परेशान हूं।

पीड़ित - 2, मुंबई
शादी के बाद ही मेरी पत्नी ने मुझसे कहा , मैं हैंडसम नहीं हूं और वह मुझसे संतुष्ट नहीं है। उसने कहा कि उसने अपने भाइयों की डर से मेरे साथ शादी की क्योंकि उन्होंने मुझे चुना था , लेकिन यह बात वह अपने घर वालों के सामने नहीं कहती। उसने झूठा इल्जाम लगाकर मुझे 498 में फंसा दिया। मैं एक साल जेल में रहा। मैंने अपर कोर्ट में अप्लाई किया और हमारे बीच समझौता हो गया। अब मैं अपनी पत्नी और उसके पैरंट्स के साथ उनके घर पर रहता हूं। अब फिर वही हाल शुरू हो गया है। वह मुझ पर चिल्लाती है , गाली देती है और मेरी सारी सैलरी ले लेती है। मैं अपने मां - बाप का इकलौता बेटा हूं। वह मेरे साथ नहीं रहना चाहती। उसकी मां और भाई धमकाते हैं कि उसके साथ ही रहूं , नहीं तो वह फिर 498 के तहत शिकायत कर देंगे। मैं कैसे इससे बाहर निकलूं ?

पीड़ित - 3, मेंगलूर
मैं एक कंस्ट्रक्शन कंपनी में काम करता हूं। कभी - कभी काम के सिलसिले में बाहर जाने पर पत्नी को अपने पेरंट्स के साथ छोड़ता हूं। लेकिन यह उसे अच्छा नहीं लगता। उसे लगता है कि मैं उसकी केयर नहीं करता। मैं अपने परिवार के साथ रहना चाहता हूं , लेकिन वह इसके लिए तैयार नहीं है। एक दिन वह पुलिस स्टेशन गई और शिकायत दर्ज करा दी कि मैं उसे पीटता हूं और मैं और मेरे परिवार वाले उसे दहेज के लिए परेशान करते हैं। हकीकत यह है कि मेरा काफी पैसा बहुत समय तक उसके पिता के पास था जो उन्होंने अपने बेटे की शादी में इस्तेमाल किया। पुलिस हमारे घर आई और हम सब को पुलिस स्टेशन ले गई , लेकिन हमारे कुछ कॉन्टेक्ट थे , इसलिए लंबी बहस के बाद केस रजिस्टर्ड नहीं हुआ। तब उसके पेरंट्स भी मौजूद थे। तब से मैं शर्मिन्दगी महसूस करता हूं। अपनी पत्नी से बात करने का मन नहीं करता , जबकि वह मेरे साथ ही रह रही है।

क्या आपको भी लगता है कि दहेज कानून का दुरुपयोग हो रहा है। अपनी राय देने के लिए www.becharepati.blogspot.com