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Sunday 3 June 2012

सजने-संवरने में जिंदगी के तीन साल गंवा दिए !

सजने-संवरने में जिंदगी के तीन साल गंवा दिए !

पत्नियों को शायद यह पसंद न आए लेकिन एक ताजा अध्ययन के मुताबिक महिलाएं घर के बाहर निकलने से पहले सजने-संवरने में अपनी जिंदगी के महत्वपूर्ण तीन साल गंवा देती हैं।

औसतन महिलाएं रात में किसी बड़े आयोजन में जाने से पहले सजने-संवरने में सवा घंटा लगाती हैं। इसमें आखिरी समय में पहने हुए कपड़े बदलना, कपड़े को ठीक तरह से आईने के सामने खड़े होकर निहारना और अपने पर्स या हैंडबैग में चीजें ढूंढना शामिल है।

यह जानकर हैरानी होगी कि आमतौर पर महिलाएं नहाने और पैरों से बाल साफ करने में 22 मिनट, चेहरे या शरीर पर मॉइश्चराइजर या सन्सक्रीन लगाने में सात मिनट, 23 मिनट बाल संवारने में और 14 मिनट मेक-अप करने में लगती हैं। सही मायने में कपड़े पहनने में वे केवल छह मिनट लगाती हैं।

महिलाएं आमतौर पर हर सुबह काम पर जाने से पहले तैयार होने में 40 मिनट लेती हैं और यह सजना-संवरना उनकी जिंदगी के दो साल और नौ महीने खा जाता है।

पुरुषों की बात करें तो वे अपनी साथी द्वारा हैंडबैग खरीदने और एक और जोड़ी जूते पहनकर देखते वक्त उनके इंतजार में अपनी जिंदगी के तीन महीने गंवा देते हैं।

पुरुषों को अपनी साथी महिलाओं के तैयार होने और कपड़े पहनकर देखने की पूरी प्रक्रिया में बाहर खड़े रहकर इंतजार में 17 मिनट और 25 सेकंड लगाना पड़ता है।

डेली मेल के मुताबिक यह अध्ययन शार्लोट न्यूबर्ट द्वारा किया गया है।

इस जानकारी के बाद यह जानकर हैरत नहीं होगी कि अध्ययन के मुताबिक 70 प्रतिशत पुरुष इस तरह इंतजार करने से चिढ़ते हैं और 10 फीसदी पुरुषों ने तो इस कारण संबंध ही खत्म कर दिए हैं।

1 comment:

  1. दोस्तों, आज मेरी जिंदगी का सबसे बुरा दिन है. जब मैंने सोचा क्या था और हो क्या गया ? आज से सात साल पहले आज ही के दिन मैंने दहेज विरोधी होने के कारण अपने माँ-पिता की मर्जी के बिना कोर्ट मैरिज की थी. बिना दहेज लिए शादी करने के बाद भी मेरी पत्नी व उसके परिजनों द्वारा दर्ज एफ.आई.आर नं. 138/2010 थाना-मोतीनगर, दिल्ली के तहत अपनी पत्नी की अश्लील फोटो/वीडियो बनाने के और दहेज मांगने के झूठे आरोपों के कारण आठ फरवरी से लेकर सात मार्च 2012 तक जेल में रहकर आ चूका हूँ. जिसके कारण अब मेरा मानसिक संतुलन ठीक नहीं रहता है और मेरा सारा कार्य बंद हो गया है. डिप्रेशन की बीमारी के कारण किसी कार्य में "मन" भी नहीं लगता है. लेखन आदि कार्य के चिंतन और अध्धयन भी नहीं कर पाता हूँ.
    आज मेरे पास जजों को "सच" बताने के लिए वकीलों की मोटी-मोटी फ़ीस देने के लिए पैसे भी नहीं है. मैं भगवान से दुआ करता हूँ कि कभी मेरे किसी भी दोस्त के साथ ऐसे हालात ना बनाये, क्योंकि इस समय मेरे सामने कुआँ है और पीछे खाई है. मैं आज ना जिन्दा हूँ और ना मर सकता हूँ. बस एक चलती-फिरती लाश बनकर रह गया हूँ.
    दोस्तों, क्या महिलाओं को पीटना मर्दानगी की निशानी है ? यदि आपका जबाब "हाँ" है तो मुझे अपने "नामर्द" होने पर फख्र है, क्योकि मैंने अपनी पत्नी को उसकी बड़ी-बड़ी गलती पर मारने के उद्देश्य से "छुआ" भी नहीं था. एक औरत मात्र कुछ भौतिक वस्तुओं और दौलत के लालच में इतना भी नीचे गिर सकती है कि अपने पति पर पैसों के लिए अश्लील फोटो/वीडियो और दहेज मांगने के झूठे इल्जाम तक लगा देती है.यह मैंने अपने वैवाहिक जीवन के अब तक के अनुभव से जाना है.
    दोस्तों! क्या आपको यह सब झूठ लगता है ? यदि हाँ तो एक बार उपरोक्त लिंक पढ़ें और फैसला करें कि हमारा लेखन झूठा या सच्चा है. इस लिंक (देखें लिंक : http://www.sirfiraa.blogspot.in/2012/02/blog-post_05.html ) पर आपको मेरे खिलाफ एफ.आई.आर और मेरी गिरफ्तारी का वारंट आदि की फोटो भी मिलेगी.
    दोस्तों, कहने को तो शादी को सात साल हो गये मगर पिछले साढ़े तीन साल से अपने मायके में है. उससे पहले भी मेरी पत्नी अपनी जिम्मेदारियों से बचने के लिए अधिंकाश समय मायके में ही रहती थीं. महीने एक-दो या चार-पांच दिन अगर मुड होता था तो मेरे पास रहने आ जाती थी. मैंने एक "सुधार" की "उम्मीद" से इतना समय गुजार दिया,क्योंकि मैंने कहीं पढ़ लिया था कि "प्यार" से तो हैवान को भी "इंसान" बनाया जा सकता है. मगर मैं अपनी पत्नी की दूषित मानसिकता को नहीं बदल पाया. इसका मुझे अफ़सोस है. आज की तारीख में मुझे अपने लगभग साढ़े तीन के बेटे से भी मेरी पत्नी और उसके परिजन मिलवाते नहीं है और मेरे पास केस डालने के लिए पैसे नहीं है.
    दोस्तों, लगातार आ रही धमकियों के मद्देनजर ही आज आप सब को बता रहा हूँ कि भविष्य में चाहे किसी भी प्रकार से मेरी मौत (चाहे कोई दुर्घटना हो या हत्या को आत्महत्या का रूप दे दिया जाए ) हो, मेरी मौत के लिए मेरी पत्नी, मेरे सास-ससुर, दो सालियाँ, मेरा साला और मेरा साढू मोहित कपूर ही जिम्मेदार होंगे. मैंने इस संदर्भ में प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति श्रीमती प्रतिभा पाटिल को और दिल्ली हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक को पत्र लिखें. मगर कहीं से आज तक कोई मदद नहीं मिली है. मुझसे पिछले कुछ समय के दौरान अनजाने में आपके प्रति कोई गलती हो गई हो तो मुझे क्षमा कर देना, क्योंकि इन दिनों मेरा मानसिक संतुलन ठीक नहीं रहता हैं.

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