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अपनी मर्जी से मायके में रह रही महिला को भरण-पोषण की राशि पाने का अधिकार नहीं
जबलपुर के पारिवारिक न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था दी है कि अपनी मर्जी से मायके में रह रही महिला को भरण-पोषण पाने का हक नहीं है। विशेष न्यायाधीश शशिकिरण दुबे द्वारा एक महिला द्वारा दायर अर्जी खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी। श्रीमती आराधना की ओर से दायर अर्जी पर हुई सुनवाई के दौरान महिला की ओर से पति दीपक से भरण-पोषण की राशि दिलाए जाने की प्रार्थना की गई थी। सुनवाई के दौरान महिला ने स्वीकार किया था कि वह ससुराल वालों के साथ व्यवस्थित नहीं हो पा रही है, इसलिए वह अपने पति से बंधन मुक्त होना चाहती है। उसने इस आशय का एक पत्र अपने पिता को भी लिखा था कि ससुराल में उसका मन नहीं लगता। इन तमाम बातों पर गौर करने के बाद अदालत ने अर्जी पर फैसला देते हुए कहा कि यह पत्नी द्वारा पति का स्वैच्छिक परित्याग माना जाएगा। पति भले ही कमाई कर रहा हो, लेकिन अपनी मर्जी से मायके में रह रही महिला भरण-पोषण की राशि पाने का अधिकार खो चुकी है।
इस मत के साथ अदालत ने महिला की अर्जी खारिज कर दी।
पति की सहमति बिना, पत्नी द्वारा गर्भपात कराना, तलाक का आधार है
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि अपने पति की सहमति के बिना किसी महिला द्वारा गर्भपात कराना मानसिक प्रताड़ना के समान है। उसका पति इस आधार पर तलाक मांगने का हकदार है। न्यायालय ने सुधीर कपूर की इस अर्जी को उचित ठहराया कि वह हिंदू विवाह कानून के तहत तलाक पाने का हकदार है क्योंकि उसकी पत्नी सुमन कपूर ने उसकी रजामंदी के बगैर तीन बार गर्भपात कराया। सुधीर ने आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी ने गर्भपात कराये क्योंकि वह परिवार को आगे बढ़ाने के बजाय अमेरिका में अपना करियर बनाना चाहती थी। उसने यह भी आरोप लगाया कि सुमन ने उसके माता पिता और परिवार के अन्य सदस्यों का लगातार अपमान किया। एक वैवाहिक अदालत ने इन आरोपों के आधार पर सुधीर को तलाक की मंजूरी दी। महिला ने दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया। उच्च न्यायालय ने वैवाहिक अदालत के फैसले की पुष्टि की। इसके बाद सुमन ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की। सर्वोच्च न्यायालय ने रिकॉर्ड और कई न्यायिक फैसलों का उल्लेख करते हुए कहा कि सुमन का कार्य मानसिक प्रताड़ना के बराबर है और उसका पति तलाक का हकदार है।
रमेश कुमार सिरफिरा द्वारा एकत्र की गई जानकारी ....
अपनी मर्जी से मायके में रह रही महिला को भरण-पोषण की राशि पाने का अधिकार नहीं
जबलपुर के पारिवारिक न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसले में व्यवस्था दी है कि अपनी मर्जी से मायके में रह रही महिला को भरण-पोषण पाने का हक नहीं है। विशेष न्यायाधीश शशिकिरण दुबे द्वारा एक महिला द्वारा दायर अर्जी खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी। श्रीमती आराधना की ओर से दायर अर्जी पर हुई सुनवाई के दौरान महिला की ओर से पति दीपक से भरण-पोषण की राशि दिलाए जाने की प्रार्थना की गई थी। सुनवाई के दौरान महिला ने स्वीकार किया था कि वह ससुराल वालों के साथ व्यवस्थित नहीं हो पा रही है, इसलिए वह अपने पति से बंधन मुक्त होना चाहती है। उसने इस आशय का एक पत्र अपने पिता को भी लिखा था कि ससुराल में उसका मन नहीं लगता। इन तमाम बातों पर गौर करने के बाद अदालत ने अर्जी पर फैसला देते हुए कहा कि यह पत्नी द्वारा पति का स्वैच्छिक परित्याग माना जाएगा। पति भले ही कमाई कर रहा हो, लेकिन अपनी मर्जी से मायके में रह रही महिला भरण-पोषण की राशि पाने का अधिकार खो चुकी है।
इस मत के साथ अदालत ने महिला की अर्जी खारिज कर दी।
पति की सहमति बिना, पत्नी द्वारा गर्भपात कराना, तलाक का आधार है
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा है कि अपने पति की सहमति के बिना किसी महिला द्वारा गर्भपात कराना मानसिक प्रताड़ना के समान है। उसका पति इस आधार पर तलाक मांगने का हकदार है। न्यायालय ने सुधीर कपूर की इस अर्जी को उचित ठहराया कि वह हिंदू विवाह कानून के तहत तलाक पाने का हकदार है क्योंकि उसकी पत्नी सुमन कपूर ने उसकी रजामंदी के बगैर तीन बार गर्भपात कराया। सुधीर ने आरोप लगाया था कि उसकी पत्नी ने गर्भपात कराये क्योंकि वह परिवार को आगे बढ़ाने के बजाय अमेरिका में अपना करियर बनाना चाहती थी। उसने यह भी आरोप लगाया कि सुमन ने उसके माता पिता और परिवार के अन्य सदस्यों का लगातार अपमान किया। एक वैवाहिक अदालत ने इन आरोपों के आधार पर सुधीर को तलाक की मंजूरी दी। महिला ने दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया। उच्च न्यायालय ने वैवाहिक अदालत के फैसले की पुष्टि की। इसके बाद सुमन ने सर्वोच्च न्यायालय में अपील की। सर्वोच्च न्यायालय ने रिकॉर्ड और कई न्यायिक फैसलों का उल्लेख करते हुए कहा कि सुमन का कार्य मानसिक प्रताड़ना के बराबर है और उसका पति तलाक का हकदार है।
रमेश कुमार सिरफिरा द्वारा एकत्र की गई जानकारी ....
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