दहेज केस में समझौता देगा बेस्ट ऑप्शन
दहेज प्रताड़ना मामले को समझौता वादी किए जाने को लेकर लॉ कमिशन सिफारिश करने की तैयारी में है। दरअसल अभी तक दहेज प्रताड़ना का मामला गैर समझौता वादी है और इस मामले में समझौता होने के बाद भी केस रद्द करने के लिए हाई कोर्ट से गुहार लगानी पड़ती है और दोनों पक्षों की दलील से संतुष्ट होने के बाद ही हाई कोर्ट मामला रद्द करने का आदेश देती है लेकिन अगर केस समझौता वादी हो जाए तो मैजिस्ट्रेट की कोर्ट में ही अर्जी दाखिल कर मामले में समझौता किया जा सकता है। मैजिस्ट्रेट मामले को खत्म कर सकता है। कानूनी जानकार बताते हैं कि दहेज प्रताड़ना मामले को समझौता वादी किए जाने का बेहतर परिणाम देखने को मिलेगा।जानकार बताते हैं कि कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि दहेज प्रताड़ना से संबंधित मामले को टूल की तरह इस्तेमाल किया जाता है। कई बार हाई कोर्ट भी सख्त टिप्पणी कर चुकी है। 2003 में दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस जे. डी. कपूर ने अपने एक ऐतिहासिक जजमेंट में कहा था कि ऐसी प्रवृति जन्म ले रही है जिसमें कई बार लड़की न सिर्फ अपने पति बल्कि उसके तमाम रिश्तेदार को ऐसे मामले में लपेट देती है। एक बार ऐसे मामले में आरोपी होने के बाद जैसे ही लड़का व उसके परिजन जेल भेजे जाते हैं तलाक का केस दायर कर दिया जाता है। नतीजतन तलाक के केस बढ़ रहे हैं। अदालत ने कहा था कि धारा-498 ए से संबंधित मामले में अगर कोई गंभीर चोट का मामला न हो तो उसे समझौता वादी बनाया जाना चाहिए। अगर दोनों पार्टी अपने विवाद को खत्म करना चाहते हैं तो उन्हें समझौते के लिए स्वीकृति दी जानी चाहिए। धारा-498 ए (दहेज प्रताड़ना) के दुरुपयोग के कारण शादी की बुनियाद को हिला रहा है और समाज के लिए यह अच्छा नहीं है।
अदालत का वक्त होता है खराब
दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस (रिटायर्ड) आर. एस. सोढी ने बताया कि कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि पति-पत्नी के बीच गर्मागर्मी के कारण दोनों एक दूसरे के खिलाफ तोहमत लगाते हैं और इस कारण मामला कोर्ट में आ जाता है। लेकिन बाद में दोनों पक्ष को महसूस होता है कि मामले में समझौते की गुंजाइश बची हुई है और दोनों पक्ष अगर समझौता करना चाहें तो उसका प्रावधान होना चाहिए। अभी के प्रावधान के तहत ऐसे मामले में अगर दोनों पक्ष मामला खत्म भी करना चाहें तो उन्हें एफआईआर रद्द करने के लिए हाई कोर्ट में इसके लिए अर्जी दाखिल करनी होती है कई बार दोनों पक्ष कोर्ट के बाहर समझौता कर लेते हैं और अदालत में ट्रायल के दौरान मुकर जाते हैं ऐसे में अदालत का वक्त बर्बाद होता है। अगर दहेज प्रताड़ना मामले को समझौता वादी बनाया जाएगा तो निश्चित तौर पर ऐसे मामलों की पेंडेंसी में कमी आएगी।
और भी विकल्प खुले हैं
जानेमाने सीनियर लॉयर के . टी . एस . तुलसी ने कहा कि मामला समझौता वादी किए जाने से भी दोषी को बच निकलने का कोई चांस नहीं है। लेकिन इसका फायदा यह है कि अगर दोनों पक्ष चाहता है कि वह मामला खत्म कर भविष्य में फिर से साथ रहेंगे तो भी समझौता किए जाने का प्रावधान बेहतर विकल्प होगा अगर दोनों इस बात पर सहमत हों कि अब उन्हें साथ नहीं रहना तो भी आपसी सहमति से तलाक लिए जाने के एवज में दोनों मामले को सेटल कर सकेंगे। वैसे भी दहेज प्रताड़ना मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद भी अधिकतम 3 साल कैद की सजा का प्रावधान है। 3 साल तक की सजा वाले अधिकांश मामले समझौता वादी हैं ऐसे में इसे भी समझौता वादी किया जाना जरूरी है।
महिलाएं सुरक्षित महसूस करती हैं
जानीमानी वकील मीनाक्षी लेखी ने कहा कि दहेज प्रताड़ना मामले को समझौता वादी किया जाए और मामला गैर जमानती बना रहे तो दोषी को बचने का चांस नहीं रहेगा। ज्यादातर समझौता वादी केस जमानती होता है लेकिन दहेज प्रताड़ना मामला गैर जमानती है और ऐसी स्थिति में लड़का पक्ष को यह पता होगा कि अगर वह गलती करेंगे तो जेल जाएंगे। अगर किसी भी सूरत में समझौते की गुंजाइश है तो वह समझौते का रास्ता अपना सकते हैं और इस तरह पीडि़ता को जल्दी न्याय मिलेगा। निश्चित तौर पर कई बार देखने को मिलता है कि दहेज प्रताड़ना से संबंधित केस का दुरुपयोग किया जाता है लेकिन कई बार यह भी देखने को मिलता है कि लड़की को इस तरह प्रताडि़त किया जाता है कि वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पाती ऐसे में दहेज प्रताड़ना से संबंधित कानून में किसी भी तरह की ढिलाई ठीक नहीं होगी। यह कानून इसीलिए बनाया गया ताकि महिलाओं को सुरक्षा दी जा सके और काफी हद तक इस कारण महिलाएं अपने आप को काफी सुरक्षित महसूस करती हैं।
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