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Saturday, 28 July 2012

प्रेमी किरायेदार के साथ मिलकर पत्नी ने की पति की हत्या.......

नई दिल्ली
किरायेदार के साथ प्रेम संबंध थे और इस कारण पति को रास्ते से हत्या की योजना बनाई गई और फिर किरायेदार के साथ मिलकर पति की हत्या को अंजाम दिया गया। निचली अदालत ने इस मामले में सोनिया और उसके किरायेदार सतपाल को उम्रकैद सुनाई। मामला हाई कोर्ट के सामने आया। हाई कोर्ट ने कहा कि सोनिया ने सतपाल के साथ मिलकर हत्या की साजिश रची। दोनों की अपील खारिज कर दी गई। सोनिया इस मामले में खुद ही शिकायती बनी थी।

मामला 2004 का है। उत्तम नगर इलाके में रहने वाली सोनिया उर्फ गुड्डो ने बयान दिया कि जब वह अपने एक जानकार राकेश के साथ घर पहुंची तो उसके पति घर में लहूलुहान पड़े हुए थे। पुलिस के मुताबिक, 23 सितंबर 2004 को सोनिया ने बयान दिया कि वह अपनी बेटी को स्कूल छोड़ने गई थी। वापस आई तो उसके पति ने कहा कि उनके जानने वाले राकेश को बुलाकर ले आए। वह राकेश के साथ जब घर पहुंची तो उसके पति मनोज कुमार मरे पड़े थे।

इस दौरान उसने राकेश से कहा कि वह पुलिस को इत्तला न करे लेकिन पड़ोसियों ने पुलिस को इत्तला की। पुलिस ने सोनिया के बयान के आधार पर हत्या का केस दर्ज कर छानबीन शुरू कर दी। पुलिस ने सोनिया की बेटी और राकेश का बयान दर्ज किया। दोनों के बयान सोनिया के बयान से मेल नहीं खा रहे थे। पुलिस को शिकायती सोनिया पर शक हुआ और उसने दोबारा सोनिया से पूछताछ की। सोनिया ने पुलिस के सामने इकबालिया बयान दिया। सोनिया के बयान के आधार पर पुलिस ने खून से सना तौलिया और अन्य कपड़ें बरामद किए। उसके बयान के आधार पर इस मामले का दूसरा आरोपी सतपाल करनाल रोड से गिरफ्तार किया गया। सतपाल के बयान के आधार पर लोहे की पाइप बरामद की गई जिससे हत्या को अंजाम दिया गया था। यह मामला परिस्थितिजन्य साक्ष्यों पर आधारित था।
अदालती सुनवाई के दौरान यह तथ्य सामने आया कि सतपाल सोनिया और मनोज का किरायेदार था। दोनों में अवैध संबंध थे। मनोज की बेटी ने बयान दिया कि उसने सुबह 7:15 बजे अपने पिता मनोज, मां सोनिया और सतपाल को एक साथ घर में देखा था। सतपाल कुसीर् पर बैठा था जबकि मनोज नीचे। दूसरी तरफ सोनिया ने पुलिस को बयान दिया था कि सतपाल सुबह 5:30 से 6 के बीच घर से निकल गया था। इस मामले में 19 गवाह बनाए गए। निचली अदालत ने हत्या की साजिश में सोनिया और सतपाल को उम्रकैद सुनाई जबकि सतपाल को हत्या के लिए भी उम्रकैद सुनाई गई।

मामला हाई कोर्ट के सामने आया। हाई कोर्ट ने कहा कि साक्ष्य से साफ है कि सतपाल पेइंग गेस्ट के तौर पर मनोज के घर रहता था। राकेश उन सभी को जानते थे। राकेश ने बयान दिया था कि अक्सर सोनिया और सतपाल एक साथ मजार जाते थे। जब वह सोनिया के साथ घर पहुंचे तो सोनिया ने दरवाजा चाबी से खोला और अंदर मनोज मरा पड़ा था। अदालत ने कहा कि सतपाल और सोनिया में प्रेम संबंध था और इसी कारण मनोज को रास्ते से हटाया गया।

दहेज केस में समझौता देगा बेस्ट ऑप्शन

दहेज केस में समझौता देगा बेस्ट ऑप्शन

दहेज प्रताड़ना मामले को समझौता वादी किए जाने को लेकर लॉ कमिशन सिफारिश करने की तैयारी में है। दरअसल अभी तक दहेज प्रताड़ना का मामला गैर समझौता वादी है और इस मामले में समझौता होने के बाद भी केस रद्द करने के लिए हाई कोर्ट से गुहार लगानी पड़ती है और दोनों पक्षों की दलील से संतुष्ट होने के बाद ही हाई कोर्ट मामला रद्द करने का आदेश देती है लेकिन अगर केस समझौता वादी हो जाए तो मैजिस्ट्रेट की कोर्ट में ही अर्जी दाखिल कर मामले में समझौता किया जा सकता है। मैजिस्ट्रेट मामले को खत्म कर सकता है। कानूनी जानकार बताते हैं कि दहेज प्रताड़ना मामले को समझौता वादी किए जाने का बेहतर परिणाम देखने को मिलेगा।
जानकार बताते हैं कि कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि दहेज प्रताड़ना से संबंधित मामले को टूल की तरह इस्तेमाल किया जाता है। कई बार हाई कोर्ट भी सख्त टिप्पणी कर चुकी है। 2003 में दिल्ली हाई कोर्ट के तत्कालीन जस्टिस जे. डी. कपूर ने अपने एक ऐतिहासिक जजमेंट में कहा था कि ऐसी प्रवृति जन्म ले रही है जिसमें कई बार लड़की न सिर्फ अपने पति बल्कि उसके तमाम रिश्तेदार को ऐसे मामले में लपेट देती है। एक बार ऐसे मामले में आरोपी होने के बाद जैसे ही लड़का व उसके परिजन जेल भेजे जाते हैं तलाक का केस दायर कर दिया जाता है। नतीजतन तलाक के केस बढ़ रहे हैं। अदालत ने कहा था कि धारा-498 ए से संबंधित मामले में अगर कोई गंभीर चोट का मामला न हो तो उसे समझौता वादी बनाया जाना चाहिए। अगर दोनों पार्टी अपने विवाद को खत्म करना चाहते हैं तो उन्हें समझौते के लिए स्वीकृति दी जानी चाहिए। धारा-498 ए (दहेज प्रताड़ना) के दुरुपयोग के कारण शादी की बुनियाद को हिला रहा है और समाज के लिए यह अच्छा नहीं है।

अदालत का वक्त होता है खराब

दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस (रिटायर्ड) आर. एस. सोढी ने बताया कि कई बार ऐसा देखने को मिलता है कि पति-पत्नी के बीच गर्मागर्मी के कारण दोनों एक दूसरे के खिलाफ तोहमत लगाते हैं और इस कारण मामला कोर्ट में आ जाता है। लेकिन बाद में दोनों पक्ष को महसूस होता है कि मामले में समझौते की गुंजाइश बची हुई है और दोनों पक्ष अगर समझौता करना चाहें तो उसका प्रावधान होना चाहिए। अभी के प्रावधान के तहत ऐसे मामले में अगर दोनों पक्ष मामला खत्म भी करना चाहें तो उन्हें एफआईआर रद्द करने के लिए हाई कोर्ट में इसके लिए अर्जी दाखिल करनी होती है कई बार दोनों पक्ष कोर्ट के बाहर समझौता कर लेते हैं और अदालत में ट्रायल के दौरान मुकर जाते हैं ऐसे में अदालत का वक्त बर्बाद होता है। अगर दहेज प्रताड़ना मामले को समझौता वादी बनाया जाएगा तो निश्चित तौर पर ऐसे मामलों की पेंडेंसी में कमी आएगी।

और भी विकल्प खुले हैं

जानेमाने सीनियर लॉयर के . टी . एस . तुलसी ने कहा कि मामला समझौता वादी किए जाने से भी दोषी को बच निकलने का कोई चांस नहीं है। लेकिन इसका फायदा यह है कि अगर दोनों पक्ष चाहता है कि वह मामला खत्म कर भविष्य में फिर से साथ रहेंगे तो भी समझौता किए जाने का प्रावधान बेहतर विकल्प होगा अगर दोनों इस बात पर सहमत हों कि अब उन्हें साथ नहीं रहना तो भी आपसी सहमति से तलाक लिए जाने के एवज में दोनों मामले को सेटल कर सकेंगे। वैसे भी दहेज प्रताड़ना मामले में दोषी करार दिए जाने के बाद भी अधिकतम 3 साल कैद की सजा का प्रावधान है। 3 साल तक की सजा वाले अधिकांश मामले समझौता वादी हैं ऐसे में इसे भी समझौता वादी किया जाना जरूरी है।

महिलाएं सुरक्षित महसूस करती हैं

जानीमानी वकील मीनाक्षी लेखी ने कहा कि दहेज प्रताड़ना मामले को समझौता वादी किया जाए और मामला गैर जमानती बना रहे तो दोषी को बचने का चांस नहीं रहेगा। ज्यादातर समझौता वादी केस जमानती होता है लेकिन दहेज प्रताड़ना मामला गैर जमानती है और ऐसी स्थिति में लड़का पक्ष को यह पता होगा कि अगर वह गलती करेंगे तो जेल जाएंगे। अगर किसी भी सूरत में समझौते की गुंजाइश है तो वह समझौते का रास्ता अपना सकते हैं और इस तरह पीडि़ता को जल्दी न्याय मिलेगा। निश्चित तौर पर कई बार देखने को मिलता है कि दहेज प्रताड़ना से संबंधित केस का दुरुपयोग किया जाता है लेकिन कई बार यह भी देखने को मिलता है कि लड़की को इस तरह प्रताडि़त किया जाता है कि वह चाह कर भी कुछ नहीं कर पाती ऐसे में दहेज प्रताड़ना से संबंधित कानून में किसी भी तरह की ढिलाई ठीक नहीं होगी। यह कानून इसीलिए बनाया गया ताकि महिलाओं को सुरक्षा दी जा सके और काफी हद तक इस कारण महिलाएं अपने आप को काफी सुरक्षित महसूस करती हैं।

पति की हत्या में पत्नी और प्रेमी को उम्रकैद....

पति की हत्या में पत्नी और प्रेमी को उम्रकैद....

नई दिल्ली
अदालत ने अवैध संबंधों का विरोध करने पर पति की हत्या मामले में मृतक की पत्नी और उसके प्रेमी को उम्रकैद सुनाई है। अदालत ने घरेलू नौकरानी को सबूत नष्ट करने के इल्जाम से बरी कर दिया। अडिशनल सेशन जज अतुल कुमार गर्ग की अदालत ने मृतक की 11 साल की लड़की की गवाही को सबसे अहम माना। लड़की ने अदालत से कहा कि वारदात वाली रात मंदीप सिंह उनके घर आया था। पहले उसने उसकी मां परमजीत कौर के साथ मिलकर उसके पिता को शराब पिलाई। इसके बाद उसे और उसके भाई को नौकरानी के साथ दूसरे कमरे में भेज दिया था। अगले दिन उसके पिता मृत पाए गए थे।

पेश मामले के मुताबिक, 27-28 अक्टूबर 2007 को पुलिस को सूचना मिली थी कि डिफेंस कॉलोनी इलाके में रहने वाले एक शख्स की हत्या हो गई है। पुलिस ने मौके से खून से सना एक चाकू और लोहे का तवा भी बरामद किया। पुलिस को छानबीन से पता चला कि मृतक हरभजन सिंह की पत्नी परमिंदर कौर के किसी मंदीप सिंह नामक शख्स से अवैध संबंध थे। हरभजन सिंह इसका विरोध करता था।

पुलिस ने महिला को हिरासत में लेकर उससे सख्ती से पूछताछ की तो उसने सच बयान कर दिया। पुलिस ने उससे मिली जानकारी के आधार पर मंदीप सिंह को गिरफ्तार कर लिया। पुलिस ने सबूत नष्ट करने के आरोप में मृतक की नौकरानी चंदा को भी गिरफ्तार किया। पुलिस ने जब मृतक की लड़की से पूछताछ की तो उसने इस बात का खुलासा किया कि मंदीप सिंह अकसर उनके घर पर आता था। जब भी वह घर आता था उनकी मां उन्हें दूसरे कमरे में भेज देती थी। वारदात वाली रात भी वह उनके घर पर आया था।

अभियोजन पक्ष ने मृतक के बच्चों सहित 21 गवाहों को अदालत में पेश किया। अदालत ने गवाहों के बयान और अभियोजन पक्ष की दलील सुनने के बाद मंदीप सिंह और परमिंदर कौर को हत्या और सबूत नष्ट करने का दोषी करार देते हुए उन्हें उम्रकैद सुनाई। अदालत ने दोनों पर 10-10 हजार रुपये का जुर्माना भी किया। वहीं अदालत ने नौकरानी को संदेह का लाभ देते हुए उसे बरी कर दिया।

Tuesday, 17 July 2012

किन मामलों में हो सकता है समझौता और किन में नहीं

किन मामलों में हो सकता है समझौता और किन में नहीं1 Jul 2012, 0900 hrs IST,नवभारत टाइम्स

देखने में आता है कि कई बार किसी मामले में शिकायती और आरोपी के बीच समझौता हो जाता है और केस खत्म होने के लिए संबंधित अदालत में अर्जी दाखिल की जाती है। केस रद्द करने का आदेश पारित हो जाता है। लेकिन कई ऐसे मामले भी हैं, जिनमें समझौता नहीं हो सकता। और ऐसे मामले भी हैं, जिनमें हाई कोर्ट की इजाजत से ही केस खत्म हो सकता है। क्या है कानूनी प्रावधान, बता रहे हैं राजेश चौधरी :

समझौतावादी मामले
सीआरपीसी के तहत मामूली अपराध वाले मामले को 'समझौतावादी अपराध' की कैटिगरी में रखा गया है। जैसे क्रिमिनल डिफेमेशन, मारपीट, जबरन रास्ता रोकना आदि से संबंधित मामले समझौता वादी अपराध की कैटिगरी में रखा गया है। कानूनी जानकार और हाई कोर्ट में सरकारी वकील नवीन शर्मा के मुताबिक समझौतावादी अपराध वह अपराध है, जो आमतौर पर मामूली अपराध की श्रेणी में रखा जाता है। ऐसे मामले में शिकायती और आरोपी दोनों आपस में समझौता कर कोर्ट से केस खत्म करने की गुहार लगा सकते हैं।

ऐसे मामले में अगर दोनों पक्षों में आपस में समझौता हो जाए और केस खत्म करने के लिए रजामंदी हो जाए तो इसके लिए इन्हें संबंधित कोर्ट के सामने अर्जी दाखिल करनी होती है। इस अर्जी में अदालत को बताया जाता है कि चूंकि दोनों पक्षों में समझौता हो गया है और मामला समझौतावादी है, ऐसे में केस रद्द किया जाना चाहिए। अदालत की इजाजत से केस रद्द किया जाता है। जो मामले समझौतावादी हैं, उसके निपटारे के लिए केस को लोक अदालत में भी रेफर किया जाता है। लोक अदालत ऐसे मामले में एक सुनवाई में केस का निपटारा कर देती है।

गैर समझौतावादी मामले
जो मामले गैर समझौतावादी हैं, उसमें दोनों पक्षों के आपसी समझौते से केस खत्म नहीं हो सकता। सुप्रीम कोर्ट के वकील डी. बी. गोस्वामी के मुताबिक अगर मामला हत्या, बलात्कार, डकैती, फिरौती के लिए अपहरण सहित संगीन अपराध से संबंधित है तो ऐसे मामले में शिकायती और आरोपी के बीच समझौता होने से केस रद्द नहीं किया जा सकता। लेकिन किसी दूसरे गैर समझौतावादी मामले में अगर दोनों पक्षों में समझौता हो जाए तो भी हाई कोर्ट की इजाजत से ही एफआईआर रद्द की जा सकती है, अन्यथा नहीं। इसके लिए दोनों पक्षों को हाई कोर्ट में सीआरपीसी की धारा-482 के तहत अर्जी दाखिल करनी होती है और हाई कोर्ट से गुहार लगाई जाती है कि चूंकि दोनों पक्षों में समझौता हो गया है और इस मामले को आगे बढ़ाने से कोई मकसद हल नहीं होगा, ऐसे में हाई कोर्ट अपने अधिकार का इस्तेमाल कर केस रद्द करने का आदेश दे दे।

सीआरपीसी की धारा-482 में हाई कोर्ट के पास कई अधिकार हैं। हाई कोर्ट जब देखता है कि न्याय के लिए उसे अपने अधिकार का इस्तेमाल करना जरूरी है तब ऐसे मामलों में अपने अधिकार का इस्तेमाल करता है। देखा जाए तो दहेज प्रताड़ना से संबंधित मामले गैर समझौतावादी हैं, लेकिन अगर शिकायत करने वाली बहू फिर से अपने ससुराल में रहना चाहती हो और उसे अपने पति से समझौता हो चुका हो और ऐसी सूरत में दोनों पक्ष केस रद्द करवाना चाहते हैं तो वे हाई कोर्ट में अर्जी दाखिल कर इसके लिए गुहार लगाते हैं।

कई बार अगर दोनों पक्ष इस बात के लिए सहमत हो जाते हैं कि उन्हें अब साथ नहीं रहना और आपसी रजामंदी से वह तलाक भी चाहते हैं और गुजारा भत्ता आदि देने के लिए पति तैयार हो जाता है तो ऐसी सूरत में भी दहेज प्रताड़ना मामले में दोनों पक्ष केस खत्म करने की गुहार लगाते हैं। तब हाई कोर्ट अपने अधिकार का इस्तेमाल कर केस रद्द करने का आदेश पारित कर सकता है। यानी गैर समझौतावादी केसों में हाई कोर्ट के आदेश से ही केस रद्द किया जा सकता है अन्यथा नहीं।

तलाक होने पर पति भी मांग सकता हैपत्नी से गुजारा भत्ता......

तलाक होने पर पति भी मांग सकता हैपत्नी से गुजारा भत्ता......

सरकार ने हाल में हिंदू मैरिज एक्ट से जुड़े कानून में बदलाव करने का फैसला किया है। इसके लागू हो जाने के बाद तलाक लेना ज्यादा आसान हो जाएगा। वैसे, पहले से मौजूद कानून में कई ऐसे आधार हैं, जिनके तहत तलाक के लिए अर्जी दाखिल की जा सकती है। तलाक के आधार और इसकी मौजूदा प्रक्रिया के बारे में बता रहे हैं कमल हिन्दुस्तानी जी
तलाक के आधार
तलाक लेने के कई आधार हैं जिनकी व्याख्या हिंदू मैरिज एक्ट की धारा-13 में की गई है। कानूनी जानकार अजय दिग्पाल का कहना है कि हिंदू मैरिज एक्ट के तहत कोई भी (पति या पत्नी) कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी दे सकता है। व्यभिचार (शादी के बाहर शारीरिक रिश्ता बनाना), शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना, नपुंसकता, बिना बताए छोड़कर जाना, हिंदू धर्म छोड़कर कोई और धर्म अपनाना, पागलपन, लाइलाज बीमारी, वैराग्य लेने और सात साल तक कोई अता-पता न होने के आधार पर तलाक की अर्जी दाखिल की जा सकती है।
यह अर्जी इलाके के अडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज की अदालत में दाखिल की जा सकती है। अर्जी दाखिल किए जाने के बाद कोर्ट दूसरी पार्टी को नोटिस जारी करता है और फिर दोनों पार्टियों को बुलाया जाता है। कोर्ट की कोशिश होती है कि दोनों पार्टियों में समझौता हो जाए लेकिन जब समझौते की गुंजाइश नहीं बचती तो प्रतिवादी पक्ष को वादी द्वारा लगाए गए आरोपों के मद्देनजर जवाब दाखिल करने को कहा जाता है। आमतौर पर इसके लिए 30 दिनों का वक्त दिया जाता है। इसके बाद दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट मामले में ईशू प्रेम करती है और फिर गवाहों के बयान शुरू होते हैं यानी वादी ने जो भी आरोप लगाए हैं, उसे उसके पक्ष में सबूत देने होंगे।
कानूनी जानकार ललित अस्थाना ने बताया कि वादी ने अगर दूसरी पार्टी पर नपुंसकता या फिर बेरहमी का आरोप बनाया है तो उसे इसके पक्ष में सबूत देने होंगे। नपुंसकता, लाइलाज बीमारी या पागलपन के केस में कोर्ट चाहे तो प्रतिवादी की मेडिकल जांच करा सकती है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत फैसला देती है। अगर तलाक का आदेश होता है तो उसके साथ कोर्ट गुजारा भत्ता और बच्चों की कस्टडी के बारे में भी फैसला देती है।
एडवोकेट आरती बंसल ने बताया कि हिंदू मैरिज एक्ट की धारा-24 के तहत दोनों पक्षों में से कोई भी गुजारे भत्ते के लिए किसी भी स्टेज पर अर्जी दाखिल कर सकता है। पति या पत्नी की सैलरी के आधार पर गुजारा भत्ता तय होता है। बच्चा अगर नाबालिग हो तो उसे आमतौर पर मां के साथ भेजा जाता है। पति या पत्नी दोनों में जिसकी आमदनी ज्यादा होती है, उसे गुजारा भत्ता देना पड़ सकता है।
आपसी रजामंदी से तलाक
आपसी रजामंदी से भी दोनों पक्ष तलाक की अर्जी दाखिल कर सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि दोनों पक्ष एक साल से अलग रहे हों। आपसी रजामंदी से लिए जाने वाले तलाक में आमतौर पर टेंपरामेंटल डिफरेंसेज की बात होती है। इस दौरान दोनों पक्षों द्वारा दाखिल अर्जी पर कोर्ट दोनों पक्षों को समझाने की कोशिश करता है। अगर समझौता नहीं होता, तो कोर्ट फर्स्ट मोशन पास करती है और दोनों पक्षों को छह महीने का समय देती है और फिर पेश होने को कहती है। इसके पीछे मकसद यह है कि शायद इतने समय में दोनों पक्षों में समझौता हो जाए।
छह महीने बाद भी दोनों पक्ष फिर अदालत में पेश होकर तलाक चाहते हैं तो कोर्ट फैसला दे देती है। आपसी रजामंदी के लिए दाखिल होने वाली अजीर् में तमाम टर्म एंड कंडिशंस पहले से तय होती हैं। बच्चों की कस्टडी के बारे में भी जिक्र होता है और कोर्ट की उस पर मुहर लग जाती है।
जूडिशल सैपरेशन
हिंदू मैरिज एक्ट में जूडिशल सैपरेशन का भी प्रोविजन है। यह तलाक से थोड़ा अलग है। इसके लिए भी अर्जी और सुनवाई तलाक की अर्जी पर होने वाली सुनवाई के जैसे ही होती है, लेकिन इसमें शादी खत्म नहीं होती। दोनों पक्ष बाद में चाहें तो सैपरेशन खत्म कर सकते हैं यानी जूडिशल सैपरेशन को पलटा जा सकता है, जबकि तलाक को नहीं। एक बार तलाक हो गया और उसके बाद दोनों लोग फिर से साथ आना चाहें तो उन्हें दोबारा से शादी करनी होगी।

कोई पढ़ेगा मेरे दिल का दर्द ?

भारत देश में ऐसा राष्टपति होना चाहिए जो देश के आम आदमी की बात सुने और भोग-विलास की वस्तुओं का त्याग करने की क्षमता रखता हो. ऐसा ना हो कि देश का पैसा अपनी लम्बी-लम्बी विदेश यात्राओं में खर्च करें. इसका एक छोटा-सा उदाहरण माननीय राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल जी है. जहाँ पर किसी पत्र का उत्तर देना भी उचित नहीं समझा जाता है. इसके लिए मेरा पत्र ही एक उधारण है |
माननीय राष्ट्रपति जी, मैंने आपको पत्र भेजकर इच्छा मृत्यु की मांग की थी और पुलिस द्वारा परेशान किये जाने पर भी मैंने आपको पत्र भेजकर मदद करने की मांग की थी. अब लगभग एक साल मेरे भेजे पत्र को हो चुके है. आपके यहाँ से कोई मदद नहीं मिली. क्या अब मैं अपना जीवन अपने हाथों से खत्म कर लूँ. कृपया मुझे जल्दी से जबाब दें.
मैंने जब अपने वकीलों या अनेक व्यक्तियों को अपने केसों के बारें में और अपने व्यवहार के बारे में बताया तब उनका यहीं कहना था कि आपको अपनी पत्नी के इतने अत्याचार नहीं सहन करने चाहिए थें और उसको खूब अच्छी तरह से मारना चाहिए था. लगभग छह महीने पहले आए एक फोन पर मेरी पत्नी का कहना था कि-अगर तुमने कभी मारा होता तो तुम्हारा "घर" बस जाता. क्या मारने से घर बसते हैं ? क्या आज महिलाएं खुद मार खाना चाहती हैं ? क्या कोई महिला बिना मार खाए किसी का घर नहीं बसा सकती है ? इसके साथ एक और बिडम्बना देखें-मेरे ऊपर दहेज के लिए मारने-पीटने के आरोपों के केस दर्ज है और मेरी पत्नी के पास इसके कोई भी सबूत नहीं है. केस दर्ज होने के एक साल बाद मेरी पत्नी ने एक दिन फोन पर कहा था कि ये सब मैंने नहीं लिखवाया ये तो वकील ने लिखवाया है , क्योकि हमारा केस ही आपके खिलाफ दर्ज नहीं हो रहा था. फिर आदमी कहीं पर तो अपना गुस्सा तो निकलेगा. पाठकों आपको शायद मालूम हो हमारे देश में एक पत्नी द्वारा अपने पति और उसके परिजनों के खिलाफ एफ.आई.आर. लिखवाते समय कोई सबूत नहीं माँगा जाता है. इसलिए आज महिलाये दहेज कानून को अपने सुसराल वालों के खिलाफ "हथिहार" के रूप में प्रयोग करती है और मेरी पत्नी तो यहाँ तक कहती है कि मेरे बहन और जीजा आदि को फंसाने के लिए पुलिसे और वकील ने उकसाया था और एक दिन जब मैं अपनी बिमारी की वजह से "पेशी" पर नहीं गया था. तब उन्होंने मेरी पत्नी का "रेप" तक करने की कोशिश की थी. अब आप मेरी पत्नी का क्या-क्या सच मानेंगे. यह आप बताए. मैं यह बहुत अच्छी तरह से जानता हूँ कि एक दिन झूठे का मुहँ काला होगा और सच्चे का बोलबाला होगा. मगर अभी तो पुलिस ने मेरे खिलाफ "आरोप पत्र" यानि चार्जशीट भी दाखिल नहीं की है. दहेज मांगने के झूठे केसों को निपटाने में लगने वाला "समय" और "धन" क्या मुझे वापिस मिल जायेगा. पिछले दिनों ही दिल्ली की एक निचली अदालत का एक फैसला अखवार में इसी तरह का आया है. उसमें पति को अपने आप को "निर्दोष" साबित करने में "दस" साल लग गए कि उसने या उसके परिवार ने अपनी पत्नी को दहेज के लिए कभी परेशान नहीं किया और ना उसको प्रताडित किया. क्या हमारे देश की पुलिस और न्याय व्यवस्था सभ्य व्यक्तियों को अपराधी बनने के लिए मजबूर नहीं कर रही है ? मैंने ऐसे बहुत उदाहरण देखे है कि जिस घर में पत्नी को कभी मारा पीटा नहीं जाता, उसी घर की पत्नी अपने पति के खिलाफ कानून का सहारा लेती है , जिस घर में हमेशा पति पत्नी को मारता रहता है. वो औरत कभी भी पति के खिलाफ नहीं जाती, क्योकि उसे पता है कि यह अगर अपनी हद पार कर गया तो मेरे सारे परिवार को ख़तम कर देगा , यह समस्या केवल उन पतियों के साथ आती है. जो कुछ ज्यादा ही शरीफ होते है.
जब तक हमारे देश में दहेज विरोधी लड़कों के ऊपर दहेज मांगने के झूठे केस दर्ज होते रहेंगे. तब तक देश में से दहेज प्रथा का अंत सम्भव नहीं है. आज मेरे ऊपर दहेज के झूठे केसों ने मुझे बर्बाद कर दिया. आज तक कोई संस्था मेरी मदद के लिए नहीं आई. सरकार और संस्थाएं दहेज प्रथा के नाम घडयाली आंसू खूब बहाती है, मगर हकीकत में कोई कुछ नहीं करना चाहता है.सिर्फ दिखावे के नाम पर कागजों में खानापूर्ति कर दी जाती है. आप भी अपने विचार यहाँ पर व्यक्त करें. लेखक से becharepati.blogspot.com पर जुड़े .......