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Tuesday 17 July 2012

तलाक होने पर पति भी मांग सकता हैपत्नी से गुजारा भत्ता......

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सरकार ने हाल में हिंदू मैरिज एक्ट से जुड़े कानून में बदलाव करने का फैसला किया है। इसके लागू हो जाने के बाद तलाक लेना ज्यादा आसान हो जाएगा। वैसे, पहले से मौजूद कानून में कई ऐसे आधार हैं, जिनके तहत तलाक के लिए अर्जी दाखिल की जा सकती है। तलाक के आधार और इसकी मौजूदा प्रक्रिया के बारे में बता रहे हैं कमल हिन्दुस्तानी जी
तलाक के आधार
तलाक लेने के कई आधार हैं जिनकी व्याख्या हिंदू मैरिज एक्ट की धारा-13 में की गई है। कानूनी जानकार अजय दिग्पाल का कहना है कि हिंदू मैरिज एक्ट के तहत कोई भी (पति या पत्नी) कोर्ट में तलाक के लिए अर्जी दे सकता है। व्यभिचार (शादी के बाहर शारीरिक रिश्ता बनाना), शारीरिक व मानसिक प्रताड़ना, नपुंसकता, बिना बताए छोड़कर जाना, हिंदू धर्म छोड़कर कोई और धर्म अपनाना, पागलपन, लाइलाज बीमारी, वैराग्य लेने और सात साल तक कोई अता-पता न होने के आधार पर तलाक की अर्जी दाखिल की जा सकती है।
यह अर्जी इलाके के अडिशनल डिस्ट्रिक्ट जज की अदालत में दाखिल की जा सकती है। अर्जी दाखिल किए जाने के बाद कोर्ट दूसरी पार्टी को नोटिस जारी करता है और फिर दोनों पार्टियों को बुलाया जाता है। कोर्ट की कोशिश होती है कि दोनों पार्टियों में समझौता हो जाए लेकिन जब समझौते की गुंजाइश नहीं बचती तो प्रतिवादी पक्ष को वादी द्वारा लगाए गए आरोपों के मद्देनजर जवाब दाखिल करने को कहा जाता है। आमतौर पर इसके लिए 30 दिनों का वक्त दिया जाता है। इसके बाद दोनों पक्षों को सुनने के बाद कोर्ट मामले में ईशू प्रेम करती है और फिर गवाहों के बयान शुरू होते हैं यानी वादी ने जो भी आरोप लगाए हैं, उसे उसके पक्ष में सबूत देने होंगे।
कानूनी जानकार ललित अस्थाना ने बताया कि वादी ने अगर दूसरी पार्टी पर नपुंसकता या फिर बेरहमी का आरोप बनाया है तो उसे इसके पक्ष में सबूत देने होंगे। नपुंसकता, लाइलाज बीमारी या पागलपन के केस में कोर्ट चाहे तो प्रतिवादी की मेडिकल जांच करा सकती है। दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत फैसला देती है। अगर तलाक का आदेश होता है तो उसके साथ कोर्ट गुजारा भत्ता और बच्चों की कस्टडी के बारे में भी फैसला देती है।
एडवोकेट आरती बंसल ने बताया कि हिंदू मैरिज एक्ट की धारा-24 के तहत दोनों पक्षों में से कोई भी गुजारे भत्ते के लिए किसी भी स्टेज पर अर्जी दाखिल कर सकता है। पति या पत्नी की सैलरी के आधार पर गुजारा भत्ता तय होता है। बच्चा अगर नाबालिग हो तो उसे आमतौर पर मां के साथ भेजा जाता है। पति या पत्नी दोनों में जिसकी आमदनी ज्यादा होती है, उसे गुजारा भत्ता देना पड़ सकता है।
आपसी रजामंदी से तलाक
आपसी रजामंदी से भी दोनों पक्ष तलाक की अर्जी दाखिल कर सकते हैं। इसके लिए जरूरी है कि दोनों पक्ष एक साल से अलग रहे हों। आपसी रजामंदी से लिए जाने वाले तलाक में आमतौर पर टेंपरामेंटल डिफरेंसेज की बात होती है। इस दौरान दोनों पक्षों द्वारा दाखिल अर्जी पर कोर्ट दोनों पक्षों को समझाने की कोशिश करता है। अगर समझौता नहीं होता, तो कोर्ट फर्स्ट मोशन पास करती है और दोनों पक्षों को छह महीने का समय देती है और फिर पेश होने को कहती है। इसके पीछे मकसद यह है कि शायद इतने समय में दोनों पक्षों में समझौता हो जाए।
छह महीने बाद भी दोनों पक्ष फिर अदालत में पेश होकर तलाक चाहते हैं तो कोर्ट फैसला दे देती है। आपसी रजामंदी के लिए दाखिल होने वाली अजीर् में तमाम टर्म एंड कंडिशंस पहले से तय होती हैं। बच्चों की कस्टडी के बारे में भी जिक्र होता है और कोर्ट की उस पर मुहर लग जाती है।
जूडिशल सैपरेशन
हिंदू मैरिज एक्ट में जूडिशल सैपरेशन का भी प्रोविजन है। यह तलाक से थोड़ा अलग है। इसके लिए भी अर्जी और सुनवाई तलाक की अर्जी पर होने वाली सुनवाई के जैसे ही होती है, लेकिन इसमें शादी खत्म नहीं होती। दोनों पक्ष बाद में चाहें तो सैपरेशन खत्म कर सकते हैं यानी जूडिशल सैपरेशन को पलटा जा सकता है, जबकि तलाक को नहीं। एक बार तलाक हो गया और उसके बाद दोनों लोग फिर से साथ आना चाहें तो उन्हें दोबारा से शादी करनी होगी।

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