रिश्तों का कातिल बना दहेज उत्पीड़न कानून |
Written by विनय शौरी |
Thursday, 22 July 2010 08:45 |
पटियाला :
भारतीय दंड संहिता(भादंसं) की सभी धाराओं को कानून बनाने वालों ने इस कदर
एक सूत्र में पिरोया था कि कोई भी सामाजिक प्राणी न्याय से अछूता न रह
सके, लेकिन कानून की कुछ धाराओं को पुलिस के माध्यम से इस तरह से प्रयोग
किया जा रहा है कि उससे भ्रष्टाचार तो बढ़ ही रहा है, साथ में रिश्तों की
महत्ता भी कम होती जा रही है। कुछ समय पहले तक लड़की को ससुराल परिवार में
सताने के अनेक मामले कानून के रखवालों के सामने आए होंगे, लेकिन समय की
रफ्तार ने इन सब मामलों के ग्राफ को पीछे छोड़ लड़कों और उनके परिवार पर
दहेज उत्पीड़न का हथियार चलाकर रिश्तों की गरमाहट को खत्म कर दिया है।
दहेज उत्पीड़न कानून के हथियार के सताए
कुछ युवकों ने एकजुट होकर रिश्तों को भावना को बचाने का प्रयास करते हुए
सेव इंडिया फेमिली नामक एक वेबसाइट लांच कर पीडि़त लोगों को अपने साथ
जोड़ने का काम शुरू कर दिया है। डब्लूडब्लूडब्लू.सेव इंडियन फेमिली. ओआरजी
नामक वेबसाइट के माध्यम से लोगों को दहेज उत्पीड़न कानून के दुरुपयोग की
जानकारी जुटा रही इस संस्था के पदाधिकारियों का कहना है कि वह पीडि़त
परिवारों को अपने साथ मिलाकर उन्हें कानूनी सहायता के साथ-साथ इस कानून के
दुष्परिणामों संबंधी जागरूक कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त दहेज उत्पीड़न
कानून में आवश्यक बदलाव के लिए प्रयासरत हैं। इ
स संबंध में पूछे जाने पर मंगलवार को शहर
के नामी वकील एडवोकेट केपी सिंह ने कहा कि बीते डेढ़ साल के दौरान देश भर
में दहेज उत्पीड़न की धारा 498 ए के अधीन करीब एक लाख 25 हजार मामले दर्ज
किए गए हैं। उन्होंने बताया कि इस कानून के अधीन मामले दर्ज करने का ग्राफ
इतना ज्यादा है, लेकिन इस कानून के तहत आरोपियों को सजा दिलाने का ग्राफ
महज दो फीसदी तक ही है। इससे साफ हो जाता है कि इस कानून के दवाब में
आरोपी पक्ष को इतना मजबूर कर दिया जाता है कि वह किसी भी कीमत पर इस कानून
की मार से बचने का प्रयास करता है। उधर दहेज उत्पीड़न की शिकायत करने
वाले मामला दर्ज करवाने के लिए पुलिस पर राजनीतिक और विभिन्न प्रकार का
दवाब बनाकर मामला दर्ज करवा दहेज में दिए सामान की सूची बनाना शुरू कर
देते हैं।
सबूतों के आधार पर जांच करने वाली पुलिस
जानबूझकर फोन पर हुई बातचीत को सबूत का हिस्सा मानने लगती है। दूसरे वकील
समीर के मुताबिक भारतीय कानून के मुताबिक यदि दहेज लेना कानूनी अपराध है
तो दहेज देना भी इतना ही अपराध माना जाता है। लेकिन दहेज उत्पीड़न का
शिकार बना शिकायतकर्ता जब न्यायालय से दहेज देने की बात कबूल करते हुए दिए
गए दहेज की सूची दायर करता है तो कानून शिकायतकर्ता पर दहेज देने के कानून
की अवहेलना को नजरअंदाज कर देता है। एडवोकेट मनोज सोइन के मुताबिक दहेज
उत्पीड़न मामलों की जांच के दौरान पुलिस शिकायतकर्ता से दिए गए दहेज के
संबंध में आयकर या आमदनी की जानकारी क्यों नहीं मांगती? उन्होंने बताया कि
आम देखने में आता है कि शिकायतकर्ता की आय का कोई विशेष साधन नहीं होता,
लेकिन उसके बावजूद वह शादी में लाखों रुपये का दहेज देने का दावा करता है।
ए
डवोकेट अनीश गर्ग के मुताबिक दहेज
उत्पीड़न जैसे मामलों को दर्ज करते समय आरोपी पक्ष पर दवाब बनाने के लिए
पुलिस जानबूझकर आरोपी पक्ष के अपाहिज, वृद्ध, एनआरआई यहां तक के नाबालिग
सदस्यों को भी आरोपियों की सूची में शामिल कर लेती है, जो पूरी तरह से
कानून की अवहेलना है। गर्ग के मुताबिक मामले की पूरी जांच के बाद ही पुलिस
को एफआईआर में आरोपियों के नाम दर्ज करने चाहिए।
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