पत्नियों से ज्यादा पीड़ित पति करते हैं आत्महत्या
Written by संजय स्वदेश |
Sunday, 22 November 2009 00:06 |
अभी तक ज्यादातर महिलाओं पर अत्याचार के मामले
सामने आते रहे हैं। इसे रोकने के लिए सशक्त कानून भी बनाए गए हैं। समय बदल
रहा है। महिला सशक्तिकरण के जमाने में अब पति पत्नी से पीडि़त हैं। चाहे
वे पत्नी के लगाए गए दहेज प्रताडऩा और घरेलू हिंसा के झूठे आरोप हों या फिर
घर में आपसी कलह। पत्नी पीिड़ता कहां जाए? न कोई हमदर्दी न कोई सरकारी
मदद। नतीजा? पीड़ित पतियों के आत्महत्या का अनुपात पीड़ित पत्नियों से
दोगुना है.
इस तथ्य पर बाद में आते हैं लेकिन पहले
आपको यह बताते हैं कि 19 नंवबर को तंग पति अंतरराष्ट्रीय पति दिवस के रूप
में मनाते हैं। पार्टी करके। बैठक करके। फिल्म देखकर। कुछ पीड़ितों का
समूहिक पिकनिक मनाकर एक दिन खुशियों को जी रहे हैं। अपने लिए शायद वैसा दिन
पत्नी के साथ फिर कभी नहीं जी पाएंगे। हकीकत बदल रही है। यकीन मानिये
जितनी हिंसा महिलाओं के साथ हो रही है, वैसी ही हिंसा पुरुषों के साथ हो
रही है। दो वर्ग बन गए हैं। एक ओर जहां पति पत्नी को पीटता है, वहीं दूसरे
वर्ग में पत्नी से पति पीडित होकर दिल में टीस लिए जिंदगी से हर आस छोड़
रहा है।
पहली बार त्रिनिदाद और टोबैगो में 1999
में 19 नवंबर को अंतरराष्ट्रीय पुरुष दिवस के रूप में मनाया गया। भारत में
इसी शुरुआत 2007 से हुई। पत्नी से प्रताडि़त होने के मामले में देश का कोई
शहर अछूता नहीं है। बस अंतर इतना है कि महिलाओं से जुड़ी हिंसा को मीडिया
ज्यादा कवरेज देता है। पीड़ित पति शर्म संकोच से कहीं नही जाते हैं। करीब
डेढ़ दशक पूर्व दिल्ली के विभिन्न इलाकों में कई जगह लिखा हुआ मिलता था -
पत्नी सताएं तो हमे बताएं, मिले नहीं लिखें। अब वो तख्ती तो नहीं दिखती है,
लेकिन पीड़ित बढ़ गए हैं.
आए दिन शादीशुदा
पुरुषों की आत्महत्या के मामले प्रकाश में आते हैं। पर इसके पीछे की सच्चाई
से बहुत कम ही लोग ही रू-ब-रू हो पाते हैं। कई बार इन कानूनों का दुरुपयोग
कर पत्नी पति को प्रताड़ित करती है। इससे तंग आकर अनेक लोगों ने आत्महत्या
की राह चुनी है।
वर्षों गुजर गए। पत्नी पीड़ितों के समूह
ने संगठित होकर सरकार से लगातार संघर्ष कर देहज उत्पीडन के कानून 498-ए में
बदलाव कर इस जमानती बनाने की मांग कर रहा है। बदलाव के लिए सरकार विचार कर
रही है। संगठन अलग पुरुष कल्याण मंत्रालय की मांग कर रहे हैं। पुरुषों के
पक्ष में दस्ताबेज जुगाड़ कर सरकार के पास ज्ञापन भेजकर लगातार दवाब बना
रहे हैं। कई शहरों में पत्नी पीडि़तों का समूह कही चुपचाप तो कहीं खुलेआम
बैठक करते हैं। एक-दूसरे की समस्या सुनते हैं और सहयोग करते हैं। जब नया
पीड़ित आता है तो उनकी काउंसलिंग होती है जिससे कि वह आत्महत्या न कर सके।
पत्नी पीड़ित राजेश बखारिया दहेज उत्पीडऩ
कानून के चक्कर में वर्षों से कोर्ट के चक्कर काटते-काटते इस अपने जैसे
दूसरे पीड़ितों का दु:ख दर्द बांटते हैं। सहयोग करते हैं। कहते हैं कि अब
तो नई नवेली दुलहन भी छोटी-छोटी बात पर दहेज विरोधी काननू का हवाला देकर
घर-परिवार में वर्चस्व जमाने की कोशिश करती हैं। खेद की बात है कि जैसे ही
पत्नी आरोप लगाती है और बात थाने तक पहुंचती है और मामला दर्ज होता है तो
पति को जेल जाना पड़ता है। वह घोर अवसाद का शिकार हो जाता है। पत्नी की
हरकतों से बेटे-भाई की जिंदगी में पडऩे वाली खलल से कई मां-बहनों का दिल
टूटा है। युवा पति कोर्ट-कचहरी के चक्कर काटते-काटते अधेड़ हो रहे हैं।
लिहाजा, इस चक्कर में पड़े अधिकतर लोग आत्महत्या को अंतिम विकल्प मान लेते
हैं। क्योंकि जैसे ही पत्नी के अरोप पुलिस दर्ज करती है, नौकरी चाहे सरकारी
हो या निजी चली जाती है।
श्रम और रोजगार मंत्रालय के वर्ष 2001-05
के जारी आंकड़ों के मुताबिक निजी और सार्वजनिक क्षेत्रों से करीब 14 लाख
लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ा। कई सर्वे व जांच में यह बात सामने आ
चुकी है कि आईपीसी की धारा 498 ए का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है।
इसके तहत कई पतियों पर दहेज के लिए पत्नी को प्रताड़ित करने के झूठे अरोप
लगे हैं। दो साल पूर्व लागू घरेलू हिंसा उन्नमूलन कानून 2005 से तो महिलाओं
को और ताकत दे दी है। उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2006 में एक सिविल याचिका
583 में यह टिप्पणी की थी कि इस कानून को तैयार करते समय कई खामियां रह गई
हैं। उन खामियों का फायदा उठा कर कई पत्नियां पति को धमका रही हैं।
उन्होंने बताया कि आंकड़े देखें तो औसतन जहां हर 19 मिनट में देश में किसी
व्यक्ति की हत्या होती है, वहीं हर 10 मिनट में एक विवाहित व्यक्ति
आत्महत्या करता है। वर्ष 2005-07 के आंकड़ों के मुताबिक दहेज उत्पीडऩ मामले
में कानून की धारा 498-ए, के तहत 1,39,058 मामले दर्ज हुए।
पत्नी पीड़ितों की एक संस्था सेव इंडिया
फैमिली फउंडेशन पत्नी पीड़ितों को काउंसलिंग से मामले सुलझाने की कोशिश
करता है। फाउंडेशन सरकार पर लगातार स्वतंत्र रूप से पुरुष कल्याण मंत्रालय
बनाने की मांग कर रहा है। श्री बखारिया का कहना है कि यदि पत्नी किसी भी
कारण से आत्महत्या करती है तो पुलिस तुरंत केस दर्ज कर आरोपियों को हवालात
में ले लेती है। घर घरेलू कलह से तंग आकर पति आत्महत्या करता है तो पत्नी
से पूछताछ तक नहीं होती है। पत्नी के प्रताड़ित करने के अधिकतर मामले साल
2000 से तेजी से बढ़े हैं। इसका प्रमुख जिम्मेदार टीवी पर प्रसारित होने
वाले कुछ धारावाहिक हैं जिनकी अनाप-शनाप कहानी में नकारात्मक छवि वाली
महिला पात्रों ने समाज में गलत असर छोड़ा है। लड़कों वालों में वधु पक्ष के
परिवार के अनावश्यक हस्तक्षेप बढ़ा है जिससे महिलाओं में अहम आ जाता है।
देश में आत्महत्या के मामले वर्ष 2005-07
विवाहित पुरुष विवाहित महिलाएं
1,65,528 88,128
विवाहित पुरुष विवाहित महिलाएं
1,65,528 88,128
आत्महत्या का अनुपात प्रतिशत
विवाहित पुरुष विवाहित महिलाएं
65.25 34.75
विवाहित पुरुष विवाहित महिलाएं
65.25 34.75
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