कौन सुनेगा बीवी के सताए पतियों की गुहार!
एनबीटी
मुम्बई ।। पतियों से सताई गई पत्नियों की दास्तान अक्सर सुनाई दे जाती है, मगर पत्नी के पति-उत्पीड़न के किस्से भी सामने आते हैं। समस्या ये है कि कमजोर महिलाओं के पक्ष में बने कानून में इनकी को सुनवाई नहीं। सेव इंडियन फैमिली (एसआईएफ) फाउंडेशन के बैनर तले बीवियों के सताए हजारों पतियों के प्रतिनिधि के तौर पर करीब सौ लोग शिमला में मिले और आजादी के जश्न का बहिष्कार किया।
सम्मेलन में पीडि़त पुरुषों का कहना था कि भारत आजाद और डेमोक्रेटिक कंट्री नहीं है क्योंकि यहां सामान्य वर्ग के पुरुष और खासकर शादीशुदा पुरुष के साथ भेदभाव किया जाता है। संविधान के आटिर्कल 14, 15, 20 और 21 के तहत मिले अधिकारों का हनन होता है। एसआईएफ के पीआरओ विराग धूलिया ने बताया कि दो दिन में हमने आगे की रणनीति पर काम किया। हमने इस झूठी आजादी का जश्न इसलिए नहीं मनाया क्योंकि हमारे साथ भेदभाव हो रहा है। संविधान ने हमें 'राइट टू लिबर्टी' दिया है लेकिन आईपीसी के सेक्शन 498ए के तहत अगर बीवी शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न की शिकायत करती है तो उसे वेरिफाई किए बिना और किसी सबूत के बगैर ही पुरुषों को सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है।
उन्होंने कहा कि आर्टिकल-20 कहता है कि एक ही अपराध के लिए किसी व्यक्ति को दो बार दोषी नहीं ठहराया जा सकता। जबकि शादी से जुड़े मामलों में इस अधिकार का हनन होता है। एक ही आरोप के लिए 498ए, डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट, सीआरपीसी के सेक्शन 125, हिंदू मैरिज एक्ट, डाइवोर्स केस, चाइल्ड कस्टडी केस आदि मामलों में एक्शन की वजह से कई लिटिगेशन, प्रॉसिक्यूशन और ट्रायल का सामना करना पड़ता है। इसी तरह आटिर्कल-14 के मुताबिक, कानून की नजर में सब बराबर हैं। इस मामले में भी हमारे साथ भेदभाव होता है। एक तो डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट में पुरुषों को घरेलू हिंसा के खिलाफ संरक्षण नहीं दिया गया है। दूसरा, सिर्फ महिला के कहने भर से बिना किसी सबूत के पुरुष को दोषी ठहरा दिया जाता है।
मुम्बई ।। पतियों से सताई गई पत्नियों की दास्तान अक्सर सुनाई दे जाती है, मगर पत्नी के पति-उत्पीड़न के किस्से भी सामने आते हैं। समस्या ये है कि कमजोर महिलाओं के पक्ष में बने कानून में इनकी को सुनवाई नहीं। सेव इंडियन फैमिली (एसआईएफ) फाउंडेशन के बैनर तले बीवियों के सताए हजारों पतियों के प्रतिनिधि के तौर पर करीब सौ लोग शिमला में मिले और आजादी के जश्न का बहिष्कार किया।
सम्मेलन में पीडि़त पुरुषों का कहना था कि भारत आजाद और डेमोक्रेटिक कंट्री नहीं है क्योंकि यहां सामान्य वर्ग के पुरुष और खासकर शादीशुदा पुरुष के साथ भेदभाव किया जाता है। संविधान के आटिर्कल 14, 15, 20 और 21 के तहत मिले अधिकारों का हनन होता है। एसआईएफ के पीआरओ विराग धूलिया ने बताया कि दो दिन में हमने आगे की रणनीति पर काम किया। हमने इस झूठी आजादी का जश्न इसलिए नहीं मनाया क्योंकि हमारे साथ भेदभाव हो रहा है। संविधान ने हमें 'राइट टू लिबर्टी' दिया है लेकिन आईपीसी के सेक्शन 498ए के तहत अगर बीवी शारीरिक या मानसिक उत्पीड़न की शिकायत करती है तो उसे वेरिफाई किए बिना और किसी सबूत के बगैर ही पुरुषों को सलाखों के पीछे डाल दिया जाता है।
उन्होंने कहा कि आर्टिकल-20 कहता है कि एक ही अपराध के लिए किसी व्यक्ति को दो बार दोषी नहीं ठहराया जा सकता। जबकि शादी से जुड़े मामलों में इस अधिकार का हनन होता है। एक ही आरोप के लिए 498ए, डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट, सीआरपीसी के सेक्शन 125, हिंदू मैरिज एक्ट, डाइवोर्स केस, चाइल्ड कस्टडी केस आदि मामलों में एक्शन की वजह से कई लिटिगेशन, प्रॉसिक्यूशन और ट्रायल का सामना करना पड़ता है। इसी तरह आटिर्कल-14 के मुताबिक, कानून की नजर में सब बराबर हैं। इस मामले में भी हमारे साथ भेदभाव होता है। एक तो डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट में पुरुषों को घरेलू हिंसा के खिलाफ संरक्षण नहीं दिया गया है। दूसरा, सिर्फ महिला के कहने भर से बिना किसी सबूत के पुरुष को दोषी ठहरा दिया जाता है।
एसआईएफ के संस्थापक सदस्य गुरुदर्शन सिंह कहते हैं कि इन हालात में आजादी
के कोई मायने नहीं हैं। यह डेमोक्रेटिक कंट्री नहीं बल्कि एक फासिस्ट
कंट्री है। हमारी मांग है कि एक नैशनल लेवल कमिटी बनाई जाए, जो 498ए और
डोमेस्टिक वॉयलेंस एक्ट की संवैधानिकता की जांच करे। एक नैशनल कमिशन बने,
जो पुरुषों के मुद्दों और उनकी समस्याओं की स्टडी करे और सरकार को अपनी
सिफारिशें दें। मैन्स वेलफेयर मिनिस्ट्री बने। कानून में लिंगभेद खत्म किया
जाए और हस्बैंड, वाइफ वर्ड हटाकर स्पाउस और मैन, वूमन की जगह पर्सन शब्द
इस्तेमाल हो ताकि हम भी महसूस कर सकें कि वाकई हम एक आजाद देश के नागरिक
हैं।
मेरा भी यही हाल हैं
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