Om Durgaye Nmh

Om Durgaye  Nmh
Om Durgaye Nmh

Monday, 23 April 2012

इलाहाबाद उच्च न्यायलय की एक महत्वपूर्ण पहल ।

इलाहाबाद उच्च न्यायलय की एक महत्वपूर्ण पहल ।

ARUN KUMAR

Sep 29, 2011  -  Public
 हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने एक गंभीर पहल करते हुए कहा कि यदि किसी मामले में पति, उसके परिवार वाले या अन्य रिश्तेदार निचली अदालत में पेश किए जाएं, तो अदालत उन्हें तत्काल अंतरिम जमानत पर रिहा कर दे और मामले को मीडिएशन सेंटर भेजें, क्योंकि पति-पत्नी के छोटे-मोटे झगड़े अदालत की दहलीज पर पहुंचकर उनके रिश्ते में नासूर बन जाते हैं। उच्च न्यायालय की यह पहल महत्वपूर्ण है, क्योंकि बीते वर्षों में नगर संस्कृति ने वैवाहिक रिश्तों के स्वरूप को बदल दिया है। जीवन की आपाधापी में तिल का ताड़ बन जाने वाले घरेलू मुद्दे अदालतों के चक्कर काटते दिखाई दे रहे हैं।

सामाजिक व नैतिक मूल्यों में आए बदलाव के चलते ‘प्यार’ और ‘विवाह’ की परिभाषा बदल गई है। विवाह अब ‘दायित्व’ के निर्वहन का नाम नहीं, बल्कि अधिकारों की प्राप्ति का युद्धक्षेत्र बनता जा रहा है। चिंतनीय प्रश्न यह है कि क्यों वैवाहिक संबंधों में बदला लेने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। विवाह ऐसा बंधन है, जहां स्त्री और पुरुष कुछ रस्में पूरी कर जीवन भर साथ रहने का वचन लेते-देते हैं, परंतु जरूरी नहीं कि जीवनपर्यंत, जीवन में सहजता और सरसता बनी रहे। कभी-कभी अहं का टकराव और वैवाहिक मतभेद संबंधों में खटास पैदा कर देते हैं। स्थिति तब अधिक घातक हो जाती है, जब किसी एक को अपना अस्तित्व खोता नजर आए, जिसकी प्रतिक्रिया कभी-कभी मिथ्या आरोप गढ़कर रिश्तों को नीचा दिखाने की चाह में सलाखों के पीछे पहुंचाने तक की हो जाती है। केवल बयान पर ही ससुराल पक्ष के सभी आरोपियों को जेल भेजे जाने की व्यवस्था ने कानून के नाजायज इस्तेमाल को बढ़ा दिया है। इस बढ़ती प्रवृत्ति पर दिल्ली की एक अदालत ने भी पिछले दिनों चिंता जताई थी। ‘सेव फैमिली फाउंडेशन’ और ‘माई नेशन’ के मुताबिक, भारतीय पति मौखिक, भावनात्मक और आर्थिक हिंसा का शिकार बन रहे हैं। यह ठीक है कि ऐसे पुरुषों की संख्या पीड़ित स्त्रियों की अपेक्षा बहुत कम हो, लेकिन इस प्रवृत्ति को पूरी तरह अविश्वसनीय नहीं कहा जा सकता। हमेशा ही यह मानकर नहीं चला जा सकता कि पुरुष सदैव शोषक और स्त्री शोषित ही होती है। यह मानवाधिकार के लिहाज से भी गलत है कि किसी गैरजघन्य अपराध के मामले में बिना जांच किए किसी व्यक्ति को सिर्फ एफआईआर के आधार पर गिरफ्तार कर लिया जाए।
समय बदल रहा है और स्त्री-पुरुष के रिश्ते इस बदलाव में अपना संतुलन खोज रहे हैं। यह संतुलन किसी कानून से नहीं कायम किया जा सकता। कानून से रोका भी नहीं जा सकता। यह कानून का मसला है भी नहीं। कानून तो सिर्फ उसके दुरुपयोग की वजह से कठघरे में खड़ा है। ऐसे कानून हमें चाहिए, लेकिन दुरुपयोग न होने की गारंटी के साथ।

No comments:

Post a Comment